गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

चलो रे डोली, उठावो ना.....(कहानी)


    

    आज जमुना की शादी होने जा रही थी, उसका दिल हिलौरे मार रहा था। कभी गंगा से मिलती तो कभी सरस्वती से। कभी मलिका के कान में फुसफुसाती तो कभी सलिला से गले मिलती। बैंड बाजे की मादकता उसके दिलों दिमाग में उतर कर उसे  अधीर किये जा रही थी। घर की रंग बिरंगी रोशनी गली के मोड़ तक अपनी छटा बिखेर रही थी। नाज-नखरे से पली जमुना अपने दो भाईयों से छोटी अपने माता-पिता की प्यारी-दुलारी थी। सबसे छोटी होते हुए भी घर में उसी की चलती थी। जो जमुना ने कहा, वह होकर रहता था। इस समय जमुना का रूप-यौवन उसके सोलह श्रृंगार से जगमग-जगमग कर रहा था। सोलह साल की जमुना, बीस साल की परी लग रही थी।
ज्यूं-ज्यूँ बैंड बाजा की ध्वनि नजदीक आती जा रही थी, जमुना के दिल की धड़कने बढ़ती जा रही थी। मारे खुशी के दिल संभले नहीं संभल रहा था। जमुना कभी फूल मालाएँ मंगाने के लिए अपने भैया से कहती तो कभी अपने दूल्हे राजा के लिए इत्र-फूलेल की मांग कर बैठती। 
आखिर नाचते-गाते, मस्ती में झूमते युवक-युवतियों की मंडली दूल्हे के साथ घर की चौखट पर आ धमकी। घर पर तोरण द्वार बंधा था। दूल्हे ने अपनी छड़ी से तोरण मारा। घर की देहरी पर सहेलियों के साथ दूल्हन द्वार पर लाई गई। सकुचाती-शरमाती नवयौवना दूल्हन ने कुछ ही पलों में अपने दूल्हे को वरमाला पहनाई। चूँकि वर दूल्हन से बड़ा ही होता है, सो दूल्हे राजा ने भी बड़ी सहजता से दूल्हन को वरमाला पहनाई। इसके तुरंत बाद वर-वधु को पाणिग्रहण संस्कार के लिए मंडप में लाया गया। 'हथलेवा में जमुना अपने वर के हाथ को अपने हाथ में लिये मदहोश हुए जा रही थी। पंडितजी ने वैदिक मंत्रोच्चार से सात जन्मों के वादे-कसमों के साथ जीवन भर साथ रहने की  दूल्हे-दूल्हन से हामी भरा रहे थे।  दूल्हे-दूल्हन सबके सामने अग्नि की साक्षी में पंडितजी की हां में हाँ भर रहे थे।
अब दूल्हन की विदाई का समय था। सबकी आँखें नम थी। दूल्हन के माता-पिता बिलख रहे थे। दूल्हन भी फूट-फूट कर रोती हुई सबके गले मिलती हुई आशीर्वाद ले रही थी। अब दूल्हे राजा दूल्हन को अपनी गाड़ी में लेकर प्रस्थान हो चुके थे। 
समय सरकता चला गया। शादी हुए दो वर्ष बीत चुके थे। जमुना की कोंख में नया मेहमान भी आ चुका था। जमुना बड़ी खुश थी। शीघ्र ही बच्चे की किलकारी से घर, स्वर्ग में तब्दील हो गया। दादा-दादी, माता-पिता, देवर-देवरानी सबका चहेता वह राजकुमार था। 
जमुना का पति जयपुर में प्राईवेट फर्म में कार्यरत था। उसकी पगार भी कम ही थी। वह चाहता था कि जमुना घर के काम में माँ का सहयोग करे, जबकि जमुना चाहती थी कि जिस प्रकार उसकी पीहर में चलती थी, यहाँ भी चले। क्यों नहीं, मैं नौकरी लगकर पैसा कमाऊँ, जिससे मैं स्वतंत्र भी रह सकूँगी और घर के सारे कामों का बोझ भी मेरे ऊपर नहीं रहेगा। वह पढ़ी लिखी तो थी ही, उसके पीहर वालों ने भी उसके इस कार्य में सहयोग किया। जल्दी ही उसकी ख्वाहिश भी पूरी हो गई। उसे आंगनबाड़ी में आशा सहयोगिनी के रूप में नियुक्ति मिल गई। उसको पास ही ढाणी में लगा दिया गया। उसी परिसर में एक प्राथमिक चिकित्सालय भी था। शनै-शनै चिकित्सालय के कम्पाउडर से उसकी नजदीकिया बढऩे लगी। धीरे-धीरे यह सुगबुगाहट की आँच परिवार तक पहुँचने लगी। 
परिवार वालों ने उसे गाँव की मान-मर्यादा के बारे में खूब समझाया। जवानी में अल्हड़ जमुना पर प्रेम की मादकता का नशा छाने लगा था। वह सुन तो लेती थी, पर करती अपने मन से थी। ससुराल वाले को यह रास नहीं आ रहा था। उन्होंने नौकरी छोडऩे के दबाव बनाना शुरू किया। अब जमुना का भी मुँह खुलने लग गया था। उसने साफ कह दिया कि वह नोकरी हरगिज नहीं छोडेगी। धीरे-धीरे चिंगारी लौ पकडऩे लगी। एक दिन जमुना को ग्रामीणों द्वारा रंगे हाथों पकड़ लिया गया। घर आने पर जमुना को अपने पति द्वारा पहली बार मार खानी पड़ी एवं सास द्वारा डाट-फटकार सहनी पड़ी। दूसरे ही दिन जमुना अपने पुत्र को लेकर अपने पीहर में आ गई।
लड़के से भी लड़की की इज्जत माता-पिता को ज्यादा प्यारी होती है। वह उनकी नाक होती है। माँ चाहती थी कि कुछ समय पश्चात् जमुना को समझा-बुझाकर पुन: उसके ससुराल भेज देंगे। लेकिन पिता के आगे उसकी एक न चली। भाई-भोजाई भी जमुना को पीहर में रहने के पक्ष में न थे। चूँकि वे महानगर में कमा कर खा रहे थे, अत: उन्होंने ज्यादा दखल देना उचित नहीं समझा। जमुना ने साफ कह दिया कि वह किसी भी सूरत में ससुराल नहीं जायेगी, भले ही वह जहर खाकर मर जायेगी। 
पिता का पारा सातवें आसमान पर चढ़ा हुआ था। उनके क्रोधी स्वभाव के कारण पास-पड़ौसी भी उनकी हाँ में हाँ ही करते रहते थे। सही बात कहने की किसी में दम नहीं था। पिता को जमुना के ससुराल वालों को ताल ठोंककर कह दिया कि मैंने पढ़ा लिखाकर उसको नौकरी करवाई है, पर यह कमाकर तो तुम्ही को देती थी। अब यह हमेशा मेरे पास ही रह लेगी, यहाँ कौनसी मेरे कमी है? बेचारी माँ जमुना के भविष्य को लेकर दु:खी थी, पर बाप और बेटी के आगे वह असहाय थी। 
अक्सर पिता अर्थार्जन के लिए घर से बाहर ही रहते थे। माँ-दादी की जमुना के आगे ज्यादा नहीं चलती थी। माता-पिता बूढ़े हो चले थे। घर का सारा सामान बाजार से जमुना ही लाती थी। वह जमुना को कम कीमत पर ही सामान देने लगा था।  एक बार जमुना की जवानी फिर से बहकने लगी थी। उसे दुकानदार के लड़के से प्यार-मुहब्बत होने लगी। समाज की मर्यादा उस पर सवार थी। वह दबे पाँव घर से उसके पास जाने लगी। कभी-कभी घर में बनी खीर-पकवान भी उसको ले जाकर देने लगी थी। 
गाँव में गहमा-गहमी होने लगी थी। सबकी निगाहे जमुना पर थी। अब जमुना ने निश्चय कर लिया था कि वह शहर जायेगी। कुछ दिन भैया के यहाँ रह लेगी। उसके प्रेमी का भी शहर में अपना स्वयं का मकान था। उसने अपने प्रेमी को भी शहर चलने के लिए तैयार कर लिया था, और एक दिन दोनों शहर चले गए। प्रेमी अपने मकान में जाकर रहने लगा और जमुना अपने भैयाओं के पास जाकर रहने लगी। जमुना ने कुछ दिन अपने भैया के घर बिताये। एक दिन उसके प्रेमी ने बताया कि अपने दोनों को ही एक ही फर्म पर काम मिल गया है। जमुना का तो मानो मन की मुराद ही पूरी हो गई। अब यदा-कदा उसकी भाभियाँ भी उस पर ताना मारने लगी थी। दूसरे दिन जमुना ने एक कमरा भी किराये ले लिया था। अब जमुना पूर्ण स्वतंत्र थी। शहर में ऐसी चारों ओर आग लगी थी। यहाँ कोई किसी को जानता तक न था। यहां कौन  किसकी बात करें, किसी को बात करने की फुर्सत नहीं थी। यहाँ तो हर कोई मैली गंगा में डुबकी लगा लेना चाहता था।
अब प्रात: उसका प्रेमी उसके घर आ धमकता। दोनों मोटर साईकिल पर बैठकर घर से निकलते। जमुना का बच्चा अभी नासमझ था। वह उसको भी साथ ले जाती थी। पड़ौसियों की निगाहे उसको घूरा करती। भाईयों के दिलों में कटार चुभती। उन्होंने जमुना को कई मर्तबा समझाया। पर जमुना अब खुद कमाने लगी थी। उसको किसी की कोई फिक्र नहीं थी। उसने समाज की मान मर्यादा को ताक पर रख दिया था। उस पर जवानी का नशा चढ़ा हुआ था। वह हर रोज गर्भ निरोधक गोली लेकर अपने शरीर को कमजोर किये जा रही थी। शाम को भी प्रेमी उसको छोडऩे घर आता, देर रात घर से निकलता। महानगर में कोई बोलने वाला नहीं था।
प्रेमी घर से संपन्न था। अब उसकी शादी भी हो चुकी थी। उसने जमुना को रखैल बना रखा था। जमुना का कुछ पैसा मिलाकर उसने जमुना के लिए मकान भी बनवा दिया था। धीरे-धीरे जमुना का घर से संबंध भी कट गया था। ससुराल वालों ने पहले ही उसको नकार दिया था। माता-पिता की भी मृत्यु हो चुकी थी। जमुना का यौवन भी ढलने लगा था। उसका प्रेमी भी मुख मोडऩे लगा था। जमुना के पति ने भी दूसरी शादी कर ली थी। भाई-भावज भी नाक सिकोडऩे लगे थे। जमुना ने रिश्तों में कालिख पोत दी थी। समाज-नातेदार सब दूर हो चुके थे। अब जमुना को न कोई बुलाता था और न ही जमुना किसी के पास जाती थी। अब वह कटी पतंग की भांति असहाय हो चुकी थी।
एक दिन उसका बेटा भी किसी गैर बिरादरी की औरत को लेकर दूसरे शहर भाग गया। अब उसे कोई पानी पिलाने वाला भी नहीं बचा। जिन्दगी किस प्रकार करवट लेती है, अब उसको अपनी गलती का भान हो चुका था। लंबे समय के एकाकीपन के कारण उसको बीमारी ने आ घेरा। धीरे-धीरे उसका शरीर गलने लगा और एक दिन उसके प्राण पखेरू उड़ गए। किसी ने पुलिस को सूचना दे दी थी। चारों ओर पुलिस की गहमा-गहमी थी। अर्थी पड़े हुए थी। कोई उसे उठाने वाला न था। मानो वह कह रही थी। चलो रे डोली उठाओ ना......।  

2 टिप्‍पणियां:

  1. यह कहानी आज समाज में हर कहीं देखी जा सकती हैं , जिसका मूल कारण महिला के अति शिक्षित होने के साथ अति महत्वाकांक्षी व अपने यौवन पर अहंकार का होना है। वे कमी से जीवन जीना नहीं चाहती है। वे यौवन की चार दिन के चांदनी में फिसल जाती है और दल दल गिरती रहती है, इसमें कुछ कमी महिला के पीहर पक्ष का ही है जो उसका पक्ष लेने लगते हैं। 2. महिला का शिक्षित होना वरदान है इससे दो परिवारों को भला हो सकता हैं , लेकिन कुछ महिलाएं इस गलत राह पर चल पड़ती हैं जो उनके जीवन को भी दुर्भाग्य में डाल देती है। 3.इसी महिलाओं को अपने, अपने परिवार व समाज के लिए सामाजिक व्यवस्था में रह कर , चाहे धन की कमी ही क्यों नहीं हो, जीवन को जी सकती है। ऐसे दुराचरण से बच कर अपना व अपने परिवार को बचा सकती हैं। निवेदक सामाजिक चिंतक देवेन्द्र त्रिपाठी अजमेर

    जवाब देंहटाएं
  2. शादी में हुआ हो धोखा
    जी मेरा लड़का डॉक्टर है। शादी के बाद पता चलता है कि वह डॉक्टर के यहां काम करता है। अक्सर इस तरह की खबरें आती हैं कि लड़के का पेशा बताया कुछ और गया था और झूठ बोलकर विवाह संपन्न कराया। शादी के बाद हकीकत सामने आई। धोखे में रखकर शादी करना या तथ्य छिपाना भी अपराध की श्रेणी में आता है। 
    अक्सर देखा जाता है कि पत्नी के जीवित होने पर भी पति दूसरा विवाह कर लेता है, जबकि पहली पत्नी के जीवित रहते ऐसा करना कानूनन अपराध है। 
    भारतीय अप्रवासियों की बढ़ती संख्‍या और इसके फलस्‍वरूप विदेशों में होने वाले विवाहों के कारण इस प्रकार के विवाहों में वैवाहिक तथा विवाह से जुड़े विवादों की संख्‍या बढ़ती जा रही है। विदेशों में बसे भारतीयों के साथ विवाह में सावधानी न बरतने और तथ्‍यों की पर्याप्‍त जानकारी न होने के कारण समस्‍याएं खड़ी हो जाती हैं। ऐसे मामलों में विभिन्‍न कारणों से, जैसे घरेलू हिंसा, विवाहेत्‍तर संबंधों, वीजा/आप्रवासन प्राप्‍त करने में विलंब, एकतरफा विवाह-विच्‍छेद आदि, पति पत्‍नी तक को छोड़ देने तक की नौबत आ जाती है। एनआरआई से विवाह कर रही हैं, तो सावधानी बरतना जरूरी है। 

    जवाब देंहटाएं

thanks for comment