असतो मा सदगमय।। तमसोर्मा ज्योतिर्गमय।। मृत्योर्मा अमृतगमय।।
सर्वे भवन्तु सुखिन:। सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु।
मा कश्चित् दु:ख भागभवेत्।
मा कश्चित् दु:ख भागभवेत्।
हे माँ असत्य से सत्य की राह पर ले चल। अंधकार से प्रकाश की ओर ले चल। और मृत्यु से अमरता की ओर ले चल। सभी सुखी हों। सभी निरोग हो। सभी भलाई की ओर देखें, किसी को किसी प्रकार का कोई दु:ख नहीं हों।
हमारे भारतवर्ष की यही संस्कृति रही है। इसी संस्कृति के फलस्वरूप हम समस्त चराचर जगत को वसुधैव कुटुंबकम मानते हैं। लेकिन यदि बाड़ ही खेत को खाने लग जाये तो न हम बच सकते हैं और न ही कोई जंतु। बाड़ खेत की रखवाली करती है। वह एक तरह से पहरेदार का काम करती है। जब तक अन्न पककर फलीभूत नहीं हो जाता, तब तक किसी अन्य जानवरों को या लालची पुरुषों को भी वह जाने से रोकती है और तब जाकर ही हमें हमारे कर्मों का उचित पारिश्रमिक मिलता है, जिससे समस्त चराचर जगत का पोषण होता है।
वस्तुत: इस कलिकाल में करीब-करीब हर विभागों में रिश्वतखोरी की यह लालसा देखने को मिलती है। कभी-कभी लगता है हमारे रक्षक ही भक्षक हो गये हैं। सत्तायें परिवर्तनशील है। एक आती है, दूसरी चली जाती है। पर सभी में ये लालसा हमेशा बनी रहती है कि हम अधिक से अधिक धन संचय करें। और इस संचय की प्रवृत्ति के कारण वे दुराचरण को भी सदाचरण मानकर चलते हैं। मैं यह नहीं कहता कि हर व्यक्ति में यह प्रवृत्ति हो, पर अधिकाँश में यह लालच रूपी राक्षस मनोमस्तिष्क में छाया रहता है और जब यह सामूहिक रूप से लूटपाट करते हैं तो जनता का बचना मुश्किल है। यहाँ केवल सिर्फ विद्युत विभाग की ही एक बानगी पेश करता हूँ।
विद्युत विभाग के कारनामे
कहते तो हैं, हे माँ हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चल। पर स्वयं यह विभाग अंधकार में डूबा हुआ है। ऐसा कोई कनेक्षन नहीं, जिसमें रिश्वत की बू नहीं आती हो अर्थात् बिना रिश्वत के कनेक्षन दिया हो। कनेक्षन को भी इन्होंने अलग-अलग रूपों में बाँट रखा है जैसे घरेलू, अघरेलू (वाणिज्यिक), कृषि, लघु उद्योग, मध्यम उद्योग, वृहत्त उद्योग आदि। इसी प्रकार एक फेज, थ्री फेज आदि। सबकी दर अलग-अलग है। साधारण व्यक्ति तो यह भी नहीं समझता कि कौनसा कनेक्षन हितकर है और कौनसा नहीं? उसे तो केवल घर को रोशनी, पानी आदि की सुविधा चाहिए। यदि वह अपने किसी परिवारजनों के लिए घर में दीवार खींचकर दूसरा आवास बना रखा है, उसको भी उसमें से कनेक्षन लेेने की कोई सुविधा नहीं। कभी-कभी तो ये घरेलू कनेक्षन में भी कॉलोनी एक्ट, परिसर की लंबाई-चौड़ाई आदि के नियम लगाकर लंबा-चौड़ा पचास हजार तक के डिमांड नोटिस भेज देते हैं जो साधारण व्यक्ति के लिए संभव नहीं।
यद्यपि कहने को ये पहरेदार है, लेकिन बिजली चोरी के अधिकाँश केस इनकी शह पर ही होते हैं। गाँवों में कई जगह तारों पर सीधे तार डालकर या विद्युत मीटरों से छेड़छाड़कर चोरी की जाती है। जब सारे ही कुएँ में भांग घुली हो तो कौन किसको कहे। कुछ निर्दोष पड़ौसी यह जानते हुए भी कि इस चोरी का दंड भी हम सबको भुगतना पड़ेगा, पड़ौसियों की लड़ाई के डर से आगे शिकायत नहीं कर सकते । बड़े अधिकारी सर्वप्रथम फोन ही नहीं उठाते और उठाते भी है तो ऐसे शिकायतकर्ताओं से अभद्रता से बात करते हैं। और जब आगे से कोई टीम आ जाये तो ये छोटे कर्मचारी दुम दबाकर बैठ जाते हैं। जब ग्राहक पकड़ में आ जाये तो चोर और पकड़ में नहीं आवे तो साहूकार। कई बार तो देखने में आता है कि ये उसकी सूचना भी अग्रिम अपने उन ग्राहकों तक पहुँचा देते हैं, जिनसे वे रिश्वत के कुछ पैसे चोरी छिपे लेते हैं, इसका कोई हिसाब भी नहीं होता। और तो और गाँवों के हर आयोजन में इनकी जरनेटर वालों से भी साँठगाँठ होती है। भले ही दस मिनट के लिए ही बिजली गुल हो, पर बिजली गुल अवश्य होगी अन्यथा आयोजक भी जरनेटर का पैसा देने से हिचकिचायेगा। यही नहीं, हर समय बिजली गुल होने का डर बना रहता है।
लापरवाही
इस विभाग के कर्मचारियों की लापरवाही इतनी कि हमेशा एक न एक दिन करंट की घटना आम बात है। कई जगह तो नंगे तार ढीले पड़े होने के कारण जन-धन का अपार खामियाजा उठाना पड़ता है। जनता की शिकायत पर इनका तनिक भी ध्यान नहीं रहता। यद्यपि इन्होंने ऑन लाईन शिकायत की भी सुविधा दे रखी है, लेकिन इनके मातहत इन अभियंताओं तक उनकी बात नहीं पहुँचाते बल्कि ग्राहकों को स्वयं विद्युत विभाग आने को कहकर टरका देते हैं।
विद्युत बिलों के कनेक्षन में चाहे कितनी भी बड़ी त्रुटि रह जाये एक बार तो ग्राहकों द्वारा अगले माह संशोधन कर समायोजन करने की दिलासा देते हैं। चाहे उस गरीब को कितना ही मानसिक आघात लगे। यद्यपि आजकल मोबाईल द्वारा ऑन लाईन पेमेन्ट का विकल्प खुला है, राशि जमा कराने के बावजूद भी एक ही केवाईसी से दो-दो वितरण विभाग द्वारा रिमाइंडर भेजा जाता है। यही नहीं, जब ग्राहक द्वारा विद्युत बिल समय पर जमा नहीं कराने पर पेनल्टी पर पेनल्टी लगाकर उस राशि को दोगुनी-चौगुनी कर गरीब ग्राहकों से वसूलीकरण भी किया जाता है। देखा गया है कि यह राशि लाखों तक में हो जाती है। जब समय रहते कनेक्षन काट दिया जाये तो ग्राहक पर इतनी पेनल्टी से बढ़ी हुई राशि तो नहीं आये। यदि ग्राहक पुन: कनेक्षन लेना चाहे तो उसे दिया भी जा सकता है। जब आपके पास बतौर ग्राहक अमानत राशि इतनी जमा नहीं है तो पेनल्टी बढ़ाने से क्या लाभ? यदि ऐसा कार्य कोई प्राईवेट फर्म करे तो उस पर पुलिस द्वारा भी शिकंजा भी कसा जा सकता है।
यही नहीं, बिजली के बिलों में उपभोग की गई यूनिटों से राशि किस प्रकार के चढ़ाई जाती है, उसका मापदंड समझना साधारण उपभोक्ताओं के लिए सहज प्रक्रिया नहीं है। भले ही कोई ग्राहक कम यूनिट खर्च करे या बिल्कुल जीरो या ज्यादा खर्च करे विद्युत बिलों का स्थाई शुल्क एवं सर्विस चार्ज यथावत् बना रहेगा, जबकि यह न्यायोचित कत्तई नहीं है।
यदि किसी कॉलोनी में ट्रांसफार्मर जल भी गया तो वहाँ तक लाने का किराया भी उन कॉलोनी वासियों से वसूला जायेगा। साथ ही कनेक्षन में किसी प्रकार का फाल्ट आ गया हो तो ये कर्मचारी भाड़े के आदमियों या किसी ठेकेदार को काम में लगाकर अपने काम की इतिश्री कर लेंगे, चाहे वह किसी प्रकार से अप्रशिक्षित ही क्यों न हो।
समाधान-यद्यपि विद्युत रिचार्जेबल बिलों के प्रस्ताव सामने आ रहे हैं, जिससे बिजली छीजत में कमी आये। अच्छा हो विभाग शीघ्र सजग हो। लाईनों को भूमिगत बिछाये, जिससे जनता को अनावश्यक तारों के जाल से छुटकारा मिल सकें। लॉकडाऊन के समय में पुलिस एवं चिकित्सा कर्मियों की भाँति विद्युत विभाग के प्रहरी इन चोरियों पर हर पल अंकुश रखे। जब आप विद्युत शुल्क नियमित लेते हैं तो आपका दायित्व है कि जनता की शिकायत पर घर बैठे समाधान हो न कि ग्राहक आपके विभागों में चक्कर काटे। बल्कि समय-समय पर जनता की ओर से फीडबैक भी लें, जिससे आपके विभाग का मूल्यांकन भी हो सके। अन्यथा वह दिन दूर नहीं, जब ये विभाग का नाम केवल सुनने भर तक रह जायेगा, क्योंकि माननीय प्रधानमंत्रीजी की सौर ऊर्जा को बढ़ावा देना किसानों एवं समस्त जनता के लिए एक वरदान से कम नहीं है, जिससे वे आत्मनिर्भर बन सकेंगे। साथ ही इन सौर ऊर्जा के प्लांटों को कुटिर उद्योगों के रूप में बढ़ावा मिले तो अधिकतम रोजगार के साधन भी जनता को सुलभ होंगे। वैसे भी आने वाले समय में इलेक्ट्रीकल वाहनों को भी बढ़ावा मिल रहा है जो भी सौर ऊर्जा से भी रिचार्ज किये जा सकते हैं।
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