एक बार फिर दिल्ली के दंगल में केजरीवाल सरकार ने बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व वाली सत्ता को भी चित्त कर दिया। सारा अमला, सारे बड़े-बड़े मंत्री-मुख्यमंत्री, सांसद धरे रह गये। कोई समझ ही नहीं सका कि केजरीवाल को कैसे पटकनी दें। अमित शाह व नरेन्द्र मोदी की जोड़ी भी कोई कारनामा नहीं कर पाई। कांग्रेस में तो कोई लीडर ही नहीं था। वे तो अपनी हार पहले से ही मान चुके थे। टक्कर केवल और केवल बीजेपी और आप में ही थी। केजरीवाल को जनता पर पूरा विश्वास था, वहीं जनता को भी केजरीवाल पर पूरा भरोसा था। कांग्रेस और बीजेपी एक-दूसरे पर दोषारोपण करने में ही अपना समय गँवा रहे थे।
पूर्व में भी अन्य दल वाले केजरीवाल को पलटूराम, झूँठा, धोखेबाज आदि से संबोधित कर उनका मजाक उडाते थे। और तो और उनके मफलर और खांसी जैसे गौण बिन्दुओं पर भी इस मीडिया द्वारा उनका हास-परिहास किया जाता था। पिछले समय कोर्ट द्वारा आप के कुछ सांसदों को अयोग्य तक घोषित कर दिया था। कुछ व्यक्तियों ने केजरीवाल पर मानहानि तक दावे लगा दिये थे, पर केजरीवाल ने अपनी जनता के कामों को निर्विघ्र करने के लिहाज से माफी मांगने में भी देरी नहीं की और इसका परिणाम यह हुआ कि एक बार फिर अपने किये हुए कार्यों के मुद्दों पर विधान सभा की 70 में से 62 सीटें जीतकर एक बार फिर करिश्मा कर दिखा दिया। इन राजनीतिक दाँवपेच में कई साथी छूट गये तो कई बनते चले गये।
केजरीवाल सरकार के पास शक्ति के लिए पुलिस तक नहीं थी। सारी शक्तियाँ केन्द्रीय नेतृत्व के पास थी। अरविन्द केजरीवाल जानते थे कि केन्द्रीय शक्ति को चुनौती देना अपने आप को कुएँ में धकेलना था। कोर्टों के चक्कर लगाना और समय गँवाना था। इनसे पंगा लेना उचित नहीं है। फिर जनता का काम कैसे हो सकता था? दुबारा जनता कैसे वोट दे सकती है? गिरे हुए को कौन उठा सकता है? अपने आप स्वयं को बचाना है। जनता का विश्वास जीतना है। पूर्व में जनता को यह तक कह दिया था कि यदि आपके काम में कोई रिश्वत माँगे तो सहर्ष देकर अपना काम निकाल लो, पर बाद में हमें अवश्य बता दो, फिर देखो हम क्या करते हैं। उन्होंने भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिए हैल्पलाईन नं. तक जनता को मुहैया करा दिया था। जनता के लिए बिजली, पानी, दवाइयाँ, सब कुछ फ्री, महिलाओं के लिए सीटी बसों में यात्रा भी फ्री, गरीब जनता को और क्या चाहिए था। विद्यालयों एवं अस्पतालों की स्थिति में सुधार, वायु-प्रदूषण के सुधार के लिए भी ओड परिवहन द्वारा आंशिक परिवर्तन आदि कई कार्य थे, जिससे जनता का विश्वास हासिल हो सका। और ये ही मुद्दे जनता के सामने रखे गये। बीजेपी का शाहीन बाग वाला मुद्दा केवल ध्रुवीकरण का मुद्दा था। दिल्ली में हिन्दुत्व का मुद्दा भी रंग नहीं ला पाया।
ऐसा भी नहीं है कि बीजेपी ने कुछ नहीं किया। सर्जिकल स्ट्राइक, कश्मीर में धारा 370 निष्प्रभावी कर राज्य को देश की मुख्य धारा में लाना, नोटबंदी जिसके कारण आज कैसलेस पेमेन्ट के माध्यमों से हर व्यक्ति बिना बैंकों के चक्कर काटे, अपना पैसा कहीं भी, कभी भी ट्रांसफर कर सकता है। विश्व पटल पर भारत का वर्चस्व स्थापित करना, राम मंदिर जैसे मुद्दों पर कोर्ट द्वारा उनके समर्थन में फैसला देना, स्वच्छता कार्यक्रम की बदौलत आज भी हर दुकानदार, हर घर में डस्टबिन रखकर पूरे भारत को कचरा मुक्त बना रहा है। सार्वजनिक व हर घर में शौचालयों का निर्माण। हर गरीब का खाता बैंक में खुलवाना, हर रसोई को धुँआ मुक्त बनाना, देश को औद्योगिक/योद्धिक हर क्षैत्र में आत्मनिर्भर बनाना। किसानों के लिए सौलर पावर को बढ़ावा देकर आत्म निर्भर बनाना, गौमाता को काल के ग्रास से बचाने के लिए सिंगल यूज प्लास्टिक के निषेध के प्रति जागृति लाना, समय-समय पर मन की बात के माध्यम से जनता से सीधे संवाद आदि कई कार्य हैं, जिसके बल पर आज बीजेपी पूरे देश में छा रखी है।
और तो और संतों के प्रति आस्था, भगवान के प्रति भक्ति, जनता के प्रति संवेदना, माँ के प्रति समर्पण आदि कई भावनाएँ हैं जो जनता को आकर्षित करते हुए मोदी के व्यक्तित्व को मुखरित करते हुए उनकी बेदाग छवि बनाती है। और वह दिन दूर नहीं, जब यह जातिगत आरक्षण का भूत नेस्तनाबूत हो जायेगा। क्योंकि यह वहीं व्यक्ति सोच सकता है, जो अपने निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर, संपूर्ण देश-दुनियाँ की सोचे। हाल ही में केवल और और केवल नरेन्द्र मोदी ही ऐसा व्यक्तित्व है जो हर गरीब के दिलों में बसा है। जब पूर्व में वे जनता के प्रधान सेवक के रूप में अपने आप को खड़ा करते थे तो जनता भी पलक पाँवड़े बिछा देती थी। अभी भी जनता में उनकी बात दिलों में उतर रही है।
पर दिल्ली के दंगल में उनकी चाले फीकी पड़ गई। केजरीवाल को तो विरोधियों से लडऩा ही नहीं था, जनता का काम निकालना था, जनता का विश्वास पुन: हासिल करना था। अन्य दलों द्वारा चले गये पैतरों को जनता की अदालत में समझाना था और वे इसमें सफल भी हुए। पर अभी भी केजरीवाल की पार्टी को संपूर्ण भारत में काम करने के लिए बहुत बड़ा दिल, बहुत बड़ी सोच, बहुत बड़ा संघर्ष करने की आवश्यकता है। पर इतना बड़ा दमखम शायद ही हो। उसके लिए वर्षों की मेहनत चाहिए, जो हाल ही बीजेपी के पास ही है।
वोटों की बात करें तो यह वही कांग्रेस थी, जिसने एस.सी./एस.टी./दलित/मुस्लिम को वोटों के लालच में हमेशा एक तरफा रखा। इन्होंने अपनी जड़े गहरी कर ली थी। पर जब लाटरी सिस्टम द्वारा सीटे आरक्षित होने लगी तो वोट बिखरने लगे। एक ही जाति में वोटों का धु्रवीकरण होने लगा। सब जानते हैं कि मायावती की पार्टी बसपा भी आरक्षण के दम पर ही सिमट गई। ठंडे दिल से सोचो, क्या आरक्षण वाकई सही है? मैं तो कहता हूँ कि आरक्षण चाहे जातिगत हो या महिलागत या किसी राज्य को विशेष दर्जा देना, समाज में वैमनस्यता उत्पन्न ही करता है। जो समाज आपस में हिलमिल कर चल रहा है, उसमें दरारें पड़ जाती है, अराजकता छा जाती है, कत्ले आम हो जाता है, देश की संपत्ति को भारी नुकसान होता है, फिर ऐसी सत्ता किस काम की? जो इसमें भागीदार हो। विरोधी पार्टी का काम केवल विरोध करना ही नहीं, अपितु जनहितैषी कार्यों में सहयोग करना होता है। चाहे सत्ता मिले या नहीं, यह आवश्यक नहीं है। कई बार यह देखने में भी आता है कि सत्तासीन पार्टियाँ पुन: सत्ता में इसलिए भी आसीन होना चाहती है कि उन्हें अपने किये हुए कार्यों के लिए अनर्गल मुकदमेबाजी न झेलनी पड़े।
अब भी समय है- इस जातिगत आरक्षण को जड़ से खत्म करने के लिए हर दंपत्ति में एक व्यक्ति को रोजगार मिले, चाहे उसे न्यूनतम 10,000 रु. मासिक ही पगार मिले, इसके लिए पेंशन की आयु 60 वर्ष से घटाई भी जा सकती है, फिर ऐसा कोई कारण नहीं, कि जब बच्चों को रोजगार मिल जाये तो माता-पिता नौकरी के चिपके रहे। नारी शक्ति को बल देने के लिए हर परिवार में गौपालक को न्यूनतम 500 रु. व बैलों से कृषि करने वाले हर किसान को 1000 रु. सीधे उसके खाते में पैसा ट्रांसफर किये जाये तो धरती माता, मूक पशु, नारी शक्ति व किसानों की दशा में सुधार आये। जब देश का अन्नदाता खुशहाल होगा तो देश अपने आप सुदृढ़ हो जायेगा। संघ ने कहा है, बढ़ती हुई जनसंख्या एक समस्या है और यह एक साधन भी बन सकती है, हमें इस जन संसाधन को काम पर लगाना है। मैं तो कहता हूँ कि 18 वर्ष के लड़के को काम व 18 वर्ष की लड़की की शादी शीघ्रतिशीघ्र हो जाये तो अराजकता की आधी बीमारी स्वत: ही नष्ट हो जायेगी। दूसरा समाज में व्यसन (मादक द्रव्य)नासूर है, जिसका खामियाजा हर परिवार को भुगतना पड़ रहा है, पर सरकारें अपने क्षुद्र स्वार्थों के कारण इन व्यसनों को बढ़ावा दे रही है, जिसके लिए उनको खामियाजा जनता की नाराजगी से चुकाना पड़ेगा। इन सबके लिए हर पार्टी को मन-वचन-क्रम से कटिबद्ध होना आवश्यक है।
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