अचानक रात्रि के सन्नाटे को चीरते हए मकान की कॉलबैल एक घनाघना उठी। गर्मी के दिन तो थे ही-थकी-हारी मैं ग्यारह बजे सोई थी, कि उनींदी बाहर की लाईट जलाकर देखा तो मेरे होश फाख्ते हो गये। सामने चंचल खड़ी थी। ऑटो पीछे मुड़ रहा था। इतनी देर रात यह कहाँ से आ रही है? मैंने खड़े-खड़े ही दीवार घड़ी पर नजर डाली। रात के सवा बज रहे थे। मैंने अन्दर से ही पूछा, चंचल सब ठीक तो है? कम से कम तू फोन तो कर ही सकती थी।
चंचल मुंबई में किसी युवक के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रही थी। उसका इन तीन वर्षों में एक-आध बार ही फोन आया होगा। वह बड़ी जिद्दी स्वभाव की थी, कभी किसी की बात नहीं मानती थी।
चंचल ने कहा, यही से सब पूछ लेगी कि गेट भी खोलेगी? मैंने गेट खोल दिया। चंचल के पास दो सूटकेश व एक हैण्डबेग था। उसने सारा सामान बरामदे में एक ओर फेंक दिया और हो खुद बरामदे में पड़े पलंग पर पसर गई। वह काफी उदास एवं अनमनी लग रही थी। मैंने पुनः पूछा, इतनी रात तुम कहाँ से आ रही हो? कम से कम एक बार तो फोन कर ही देती, तेरे जीजाजी को ही तूझे लेने बस स्टेण्ड भेज देती। सब ठीक-ठाक तो है? उसने कहा, सारे सवाल दीदी तुम अभी ही पूछ लोगी, क्या सुबह नहीं पूछ सकती?
मेरे दिमाग में ढेर सारे सवाल उमड़-घुमड़ रहे थे। मैं हम अनमने मन से बिस्तर पर आ गई। पतिदेव निश्चिंत होकर सो रहे थे, चाहे चोर चोरी कर ले जाये, उनकी बला से। उनकी भोली सूरत मनमोहक लग रही थी। यद्यपि मैं उधेड़बुन में थी, लेकिन सोते हुए पतिदेव को जगाना मैंने उचित नहीं समझा।
मैं करवटे बदल रही थी, नींद कोसों दूर हो गई थी। अभी कल ही की तो बात थी....।
घर में हम चार ही प्राणी थे। माँ-पिताजी, मैं और चंचल। हमारे घर में एक छोटा सा मंदिर भी था। माँ ही सेवा-पूजा करती थी। माँ आध्यात्मिक, सुसंस्कारी, धार्मिक मनोवृत्ति की थी। रोज रामचरित मानस के पाठ करके भोजन किया करती। पिताजी को जरा भी कष्ट न हो, उनका पूर्ण ध्यान रखती थी। पिताजी प्राईवेट फैक्टरी में काम करते थे। यद्यपि पिताजी की आय अधिक न थी, फिर भी हमारी हर डिमांड वह बड़ी सहजता से पूरी करवा देती थी। अपने लिए वह कभी कुछ नहीं मांगती। उनकी आमद में ही घर का काम चला देती थी। माँ सारे दिन काम पर लगी रहती, मुझे तो माँ पर तरस आता, मैं अक्सर उनके काम में हाथ बँटाती रहती थी।
हमारा पालन-पोषण लड़कों की भाँति हो रहा था। हम एक ही विद्यालय में पढ़ती थी। पिताजी चाहते थे कि हम खूब पढे बजे और बड़े अफसर बने। लेकिन जब मैंने बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण कर ली तो माँ ने पिताजी को साफ कह दिया कि बच्ची बड़ी हो गई है। जमाना खराब है, महानगरों में आये दिन शराबी, लडकियों को अपनी हवश का शिकार बना रहे हैं । मैं अपनी बच्ची को खोना नहीं चाहती। जल्दी ही इसके हाथ पीले कर दीजिए। वैसे भी इनके ही खाने-पहनने के दिन हैं।
जल्दी ही माँ की मुराद पूरी हो गई। एक कस्बे में मेरे लिए वर मिल गया। वह दिल्ली की एक प्रेस में काम करता था। जब पिताजी ने माँ को बताया तो माँ मारे खुशी के फूली न समायी। लगे बात हाथ पिताजी ने माँ को जब उनकी फोटो बताई तो माँ बड़ी प्रसन्न हुई।
माँ चाहती थी कि हम दोनों का एक साथ ही विवाह हो भी जाये तो खर्चा भी बच जायेगा। जब चंचल ने सुना तो साफ इन्कार कर दिया कि मैं अभी विवाह नहीं करूंगी। मैं अपने पैरों पर खड़ी होकर ही शादी करुंगी। पहले आप लोग ही तो कहा करते थे कि हमारी बेटियों को अपने पैरों पर खड़ी होने पर ही इनकी शादी करेंगे। पिताजी भी चंचल का पक्ष लेने लग गये थे। फिर मम्मी जी कुछ नहीं बोली, मन मसोस कर रह गई। है?
मेरा धूमधाम से विवाह संपन्न हो चुका था। मैं अपने ससुराल में आ गई थी। सासु माँ मेरा बहुत ख्याल रखती थी। मेरी पढ़ाई ब्रेक हो चुकी थी। मेरे ससुराल वाले नहीं चाहते थे कि हमारी बहु घर से बाहर निकले। घर में सब कुछ था। समय के साथ मेरे दो बच्चे भी हो गये थे। मेरा मन ससुराल में रम गया था। अब मैं यदा-कदा ही । किसी कार्यक्रम के निमित्त अपने पीहर जाती थी।
मेरे ससुराल जाने के बाद माँ अनमनी को हो गई थी। चंचल, चंचल लड़की तो थी ही। वह घर पर कहाँ टिकती थी। उस पर शादी से ज्यादा अपने कॅरियर बनाने की ज्यादा धुन थी। पिताजी भी चाहते थे कि मेरी बिटिया का विवाह इस महानगर से बाहर न हो। समय के साथ उसने एम.ए./एम.एड./ पी.एच.डी. कई उपाधियां धारण कर ली थी। समाज में अब उसकी शैक्षणिक योग्यता के समकक्ष वर मिलना असंभव सा लग रहा था। माँ परेशान हो रही थी। उसकी तबियत भी खराब रहने लगी थी। पिताजी चंचल के लिए वर तलाश करने में जुटे थे कि देखते ही देखते चंचल गर्भवती हो गई। जब माँ को मालूम हुआ तो उन पर सौ-सौ घड़े पानी पड़ गये। उसने मुहल्ले में बाहर आना-जाना छोड़ दिया। चंचल ने सब कुछ बता दिया था। लड़का उसका सहपाठी ही था। वह गैर बिरादरी का था।
माँ-पिताजी ने चंचल को गर्भ गिराने के लिए बहुत समझाया, लेकिन चंचल उसी से शादी करने के लिए अडिग थी। माँ पिताजी कर भी क्या सकते थे? समाज भी कोर्ट-कचहरियों के आगे साथ नहीं दे रहा था। ऐसों केसों में कोर्ट भी लड़कियों का ही साथ देता दिखाई दे रहा था। गैर बिरादरी के कारण समाज भी उनको कैसे समझा सकता था? आखिर हार कर हालात से समझौता कर लिया। जैसे-तैसे चंचल ने नीरज से मंदिर में शादी कर ली और आर्य समाज में शादी का रजिस्ट्रेशन भी करा लिया।
चंचल उसके ससुराल में जा चुकी थी। चंचल के बच्चा भी हो चुका था। घर में नीरज और उसकी माँ ही थी। नीरज की मनमौजी स्वभाव का था। शुरू-शुरू में तो वह चंचल को खूब घुमाया करता, बाद में उसके पैसे भी ठिकाने लग गये थे। उधर सास भी चंचल से खपा थी। वह कहती रहती थी कि इसने मेरे बेटे की जिन्दगी खराब कर दी। चंचल बाहर जाकर कमाना चाहती थी, लेकिन सास इसके खिलाफ थी। अक्सर चंचल दिन में अपने पीहर आ जाती। पहले-पहले तो मम्मी-पापा को अच्छा लगता। पर धीरे-धीरे उन्होंने भी उससे कन्नी काटना शुरू कर दिया। पापा उसे ससुराल में रहने की हिदायत देते, पर चंचल कहाँ मानने वाली थी। उसका भी वहाँ से मोह भंग हो चुका था। उधर नीरज ने भी उस पर ध्यान देना बंद कर दिया था।
चंचल को एक बार फिर अपना कॅरियर याद आया। वह बहुत सारा पैसा कमाना चाहती थी। उसको पैसे में ही सारा सुख नजर आने लग गया था। एक दिन चंचल बड़ी खुश थी, मानो उसकी मुराद पूरी हो गई हो। उसने हाल ही में एक प्राईवेट कंपनी में इन्टरव्यू दिया था। जिसका हैड ऑफिस मुंबई में था। वहाँ उसको चार लाख रुपये वार्षिक का पैकेज दिया जा रहा था। मम्मी-पापा ने उसको खूब समझाया कि तुम्हारा जीवन अपने पति व बच्चों के लिए हैं, तूने खुद पसंद किया है फिर तू क्यों उनको छोड़कर जा रही है ? तूने वैसे ही हमारे खानदान पर कालिख पोत दी है। तेरे कारण हमारा रिश्तेदारों में भी आना जाना छूट गया है। पर चंचल कहाँ मानने वाली थी।
एक दिन वह मुंबई चली गई। उसने वहाँ अपनी नौकरी को ज्वाइन कर ली। अब वह न पीहर की सुध लेती और न ससराल की, यहाँ तक कि उसे उसके बेटे की भी सुध न रहती। उस पर तो मानो पैसे कमाने का भूत सवार था।
यद्यपि माँ अपना मकान बेचकर दूसरी जगह मकान लेना चाहती थी, लेकिन कोड़ियों के दाम बेचना भी सहज नहीं था। पीछे से माँ भी घुटती रही और एक दिन वह चल बसी। पिताजी भी माँ के सदमे को सहन नहीं कर सकें, तीसरे दिन वह भी चल बसे। हमने ही उनका क्रिया कर्म किया। चंचल का तो कोई अता-पता ही नहीं था।
जवान लड़की अकेली कैसे रह सकती थी। उसे किसी न किसी का अवलंबन तो चाहिए ही। चंचल के फ्लेट में उसके सामने के रूम में एक समवय सुन्दर लड़का रहता था। वह हमेशा अपनी आँखों पर एक बड़ा सा चश्मा लगाये रहता। गौरा-चिट्ठा का रंगरूप था, पैसे की कोई कमी न थी। एक गाड़ी और एक ड्राईवर भी हमेशा उसके साथ रहते थे। धीरे-धीरे चंचल पर उस लड़के का नशा चढ़ने लगा था और एक दिन उसने मुंबई की वह हाईफाई नौकरी भी छोड़ दी तथा उसके साथ ही रहने लगी थी। उसका एक-आध बार ही फोन आया होगा।
मुझे नींद कब आ गई, ध्यान ही नहीं रहा। दीदी-दीदी की आवाज से मेरी निद्रा टूटी। सामने देखा, चंचल मेरे लिए चाय लेकर खड़ी थी। उधर चंचल ने बताया कि आज उस लड़के को पकड़ने के लिए पुलिस पीछे पड़ी थी। वह हाई फाई अन्डर डॉन था। वह हिरोइन की तस्करी में गिरफ्तार हो चुका था। अब उसको भी अपनी गिरफ्तारी का भी डर सता रहा था। अब अचानक उसे अपने पति व बच्चे की याद सता रही थी।
उधर नीरज का भी उसकी माँ की इच्छानुसार अपनी बिरादरी में विवाह हो चुका था। उसकी गृहस्थी बस चुकी थी। वह भी अब कमाने लग गया था। जब हमने उनको फोन किया तो नीरज की पत्नी बिफर पड़ी, वह पुलिस बुलाने के लिए कह रही थी। चंचल को पुलिस का डर वैसे ही था सो अब वह खामोश हो चुकी थी।
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