मंगलवार, 12 मई 2020

कामना


माँ दधिमथी ज्योतिस्वरुपा श्रीमती सुनीता देवी 'लक्ष्मी(धर्मपत्नी श्री महावीर प्रसाद शर्मा) के महानिर्वाण दि. 3 मार्च, 2011 की स्मृति में भावनाओं का उमड़ा सैलाब.....


       कामना
ख्यालों पर ख्याल उतरते जा रहे हैं।
यादों का लावा फूटता जा रहा है।
अभी-अभी तो तुम आई थी,
मेरे जीवन में बसंती बहार लाई थी।
मेरे जीवन की हरियाली बन,
उसमें रंग बरसाई थी।
एक क्षण में ही तुम जाने कहां खो गई?
मेरे जीवन का बसंत हो गया छुई-मुई।
यादों का सिलसिला थम नहीं रहा है।
हृदय में टीस उमठती जा रही है।
मुझमें जान डाल, तू अजान बन गई,
मेरी खबर लेकर, तू बेखबर हो गई।
मैं तलाशता रहा, तू छिपती रही,
इस आंख मिचौली में, मेरी हार हो गई।
मेरे जीवन के सूखे बसंत अब मैं कहाँ जाऊँ?
मेरे जीवन की पीड़ा अब मैं किसे सुनाऊँ?
दर-दर भटकता रहूँ, इच्छा रहेगी अधूरी।
जीवन में शक्ति देना, यही कामना है मेरी।
जब-जब भी एकान्त मिलता है, दिल में शूल चुभती है।
तू मुझे रुलाती रही, मैं सुबकता रहा।
तू देखती रही, मैं पथरा-सा गया।
दया की दृष्टि, एक बार बिखेर देना।
सूखे चोले में, पतझड़ सरसा देना।
अटकता रहूँ या भटकता रहूँ, नहीं होगी मुराद पूरी।
जीवन में शक्ति देना, यही कामना है मेरी।।
यही कामना है मेरी।।
  अनजाना राही - महावीर प्रसाद शर्मा दि. 8 मार्च, 2011



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

thanks for comment