किसी गाँव में एक गोपी पटेल रहता था। उसकी उम्र लगभग 45-50 वर्ष की थी। उसका रंग पक्का एवं मजबूत कद काठी थी। पटेल खानदान का गाँव में अच्छा रुतबा था। लेकिन गोपी पटेल में एक आदत खराब थी, वह शाम के समय अक्सर शराब पीता था। इसी कारण पटेल खानदान की इज्जत माटी में पलीत हुए जा रही थी। उसी शराब की लत के कारण उसकी पत्नी उसको छोड़कर दूसरी जगह बैठ गई थी। उसके एक लड़का भी था, जो अब बड़ा हो चुका था, वह ट्रक में ड्राईवरी का कार्य करने लग गया था। उसके पिता के शराब की लत के कारण उसकी भी शादी भी नहीं हो पा रही थी। इसी कारण वह भी घर पर यदा-कदा ही आता था।
जब गोपी पटेल सादा रहता, तो सबके हाथ जोड़कर बड़े मान-सम्मान से बात करता, लेकिन शराब के नशे में वह सीधे तू-तड़ाम के साथ सीधे गाली से बात करता। इसी कारण गाँव वाले उससे कन्नी काट चुके थे। यहाँ तक कि उसके दो भाई भी उससे बात नहीं करते थे। अब वह अकेला था, उसकी रोटी वह स्वयं ही बनाता। तीसरे पहर वह अपने गाँव से सटे तीन किमी दूर राजमार्ग स्थित गाँव में अक्सर जाया करता। वहाँ भी किसी बेवा महिला से उसकी आँख लग गई थी। शाम के समय वहीं ढाबों में चाय पी लिया करता।
एक दिन वह सुबह 10-11 बजे ही राजमार्ग पर आ धमका। नशे में वह धुत तो था ही। गाँव का एक परिचित छोटू खां मिल गया। छोटू खां केवल नाम से ही छोटू था, लेकिन था वह पूरे छ: फिट का हृष्ट-पुष्ट, उससे केवल दो-चार साल ही छोटा था। यद्यपि वे नौ भाई थे, लेकिन उस गाँव में उसका अकेला ही घर था। वह उस गाँव में रुई पिन्दाई का कार्य करता था। अपने काम से काम में ही उसकी लगन थी। गाँव वालों से भी उसकी अच्छा मेल-मिलाप था। आज वह भी अपने कस्बे में जाने के लिए बस का इन्तजार कर रहा था कि सुबह-सुबह ही उसकी इस शराबी से मुलाकात हो गई। यद्यपि वह इससे कन्नी काटना चाह रहा था, लेकिन बस की राह में उसे वहाँ खड़ा रहना भी उसकी मजबूरी थी।
गोपी पटेल को क्या सुझी कि उसके पास आकर बोला, अरे तू मुझसे लड़। बेचारे छोटू को लडऩे से क्या मतलब था। वह हाथ जोड़कर बोला, भाई तू जीता मैं हारा, मैंने अपनी हार मानली। लेकिन गोपी पर तो लडऩे की धुन सवार थी। वह फिर छोटू को उकसाया अरे तू मुझसे भिड़ता है कि नहीं? बेचारा छोटू बार-बार हाथ जोड़ता, उधर गोपी की धुन बढ़ती जाती। आखिर छोटू का भी खून खोलने लगा, लेकिन गाँव में पटेलों का आतंक था सो वह समझदारी से काम कर रहा था। अबके गोपी ने छोटू की कमर को पकड़ कर उसको उठाना चाहा, तो छोटू ने उसको उठाकर जमीन पर पटक दिया। हाथ पैर तो पहले से ही लडख़ड़ा रहे थे, अब पटेल से उठा नहीं जा रहा था। छोटू बेचारा घबरा गया था। ढाबों वालों ने उसे समझाया कि डरने की कोई बात नहीं है, हम खुद देख रहे थे, तुम्हारी कोई गलती नहीं हैं, हम सब उसके घर वालों को समझा देंगे। इतने में छोटू की बस आ गई, वह बस में बैठकर चला गया।
गोपी पटेल के छोटू खां द्वारा सड़क पर गिराये जाने की खबर आग की तरह फैली। सब अपने-अपने मुँह से बातें बना रहे थे। जितने मुँह उतनी बात। उसके तीन भाई लट्ठ लिये राजमार्ग पर आ धमके। वह अभी तक सड़क पर ही पड़ा था, किसी ने उसे उठाने की जहमत भी नहीं की। ढाबे वालों ने उनको समझा दिया कि इसमें छोटू खां की कोई गलती नहीं थी, तुम्हारा भाई ही उसे उठा कर पटक रहा था सो वह तो उठा नहीं, और उसके वजन से तुम्हारा भाई गिर पड़ा।
अब उसके भाइयों ने अपने उस बड़े भाई को गाँव ले आये। वहाँ आकर उसको खूब समझाया कि तूने हमारे पटेल खानदान की इज्जत को मिट्टी में मिलाया है। उसके बाद उसको खूब धोया, तथा उसे एक जनेऊ भी धारण करा दी, तथा संकल्प भी कराया कि जिन्दगी भी अब शराब नहीं पिऊँगा।
लेकिन गाँव वालों की मजबूरी थी कि सरकार ने एक-एक लाईसेंस पर शराब की चार-चार दुकाने लगा रखी थी। गाँव वालों की कोई सुनने वाला भी नहीं था, न जाने कितने शराबी पैदा हो रहे थे, जिनके घर उजड़े जा रहे थे। अबके गांव वालों ने सोच लिया था कि वोट उसी को देंगे, जो हमारे गाँव में शराब के ठेके हटायेगा। आज गाँव में सबने मिलकर शराब विरोधी संकल्प लिया।
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