मंगलवार, 25 अगस्त 2020

आधुनिक युग में एक दाधीच परिवार- जिसमें सतयुग की परम्परा

प्रेरणास्रोत जीवंत परिवार - 




     जोधपुर-जोधपुर के पास पीपाड़ तहसील में साथीन गांव में भेड़ा(दाधीच) परिवार जिनके पास करोड़ों की सम्पत्ति है। यानि 80 बीघा जमीन, पांच ट्यूबवेल, सारे खेत में पाईप लाईन 5-5 हजार लीटर की दो पानी की टंकियां, ट्रेक्टर, जीप, मोटरसाइकिल और गांव में छ: कमरों का बहुत बड़ा मकान, दो  कमरे गेट पर एक महिलाओं के लिये और एक पुरुषों के मेहमानों से मिलने के लिये। उनमें दरी बिछी हुई तथा पानी का घड़ा और ऊपर लोटा। आप समझ गये होंगे कि आधुनिक कोई मेहमान घर के अन्दर प्रवेश नहीं कर सकता। वर्तमान में दो बेटे जो स्वयं आठवीं पास, लेकिन उनकी पत्नियां एक एल.एल. बी. और दूसरी बी.एस.सी. पास। पिताजी भी आठवीं पास और माताजी दसवीं पास। उनके घर में गेहूँ, चावल, चीनी, तेल, मसाले वगैरह लाना वर्जित है। मकान के अन्दर बहुत बड़ा चौक है, जो पत्थर का बना हुआ है। कमरों की छत किसी जमाने में घास-फूस की झोपड़े की तरह थी, लेकिन अब सीमेंट की सीटें लगवा ली। टाईलेट बाथरूम में अब टाइलें लगवा ली। नल चौक में एक ही है। अभी भी बाल्टियों में पानी भर ले जाते है। छ: कमरों को तीन परिवार में बाँटा हुआ है। चार बच्चे हैं-सबसे बङा 15 साल का आठवीं पढ रहा है, साथ में खेती के काम में हाथ बंटाता है। गाँव में आठवीं तक की ही स्कूल है। अत: बाहर पढऩे कोई नहीं गया। बच्चा मोटर साईकिल चला लेता है। जीप और ट्रेक्टर सीख रहा है। औरते घाघरा-ओढना ही पहनती है। पुरुष कमीज-पाजामा, लेकिन खेतों में काम करते वक्त बरमोड़ा पहन लेते हैं। 


    जोधपुर-पीपाड़ के कई रिश्ते आते हैं, लेकिन वे लोग वहाँ सम्बन्ध नहीं करते हैं। एक बहू हैदराबाद की है तो दूसरी श्री गंगानगर की। बेटी कलकत्ता ब्याहि है। गाँव वाले कितनी बार उनके परिवार वालों को सरपंच-मुखिया बनाना चाहते हैं, लेकिन उनका मानना है कि हमारे विचार रहन-सहन बदल जायेगें। अत: उन्हें साफ  मना कर देते है। मकान पूरा गोबर से साल में दो बार लीपते हैं। उनके पास चार भैस एवं चार गायें है। दो फसल लेते हैं और साग-सब्जी उगाते हैं । वे पहले फसल काटते थे। अब पूरी फसल ठेका पर दे देते हैं। सब्जियां भी छ: छ: महीनो में ठेके देते हैं। इससे उन्हें फिक्स आमदनी हो जाती है और पूरा ध्यान फसल बोना, पैदा करने में ही लगाते हैं। घर का गोबर खेती के काम में ही लेते हैं। सारा काम घर के छ: जने मिलकर करते हैं। कभीकभार बाहर के मजदूरों से काम करवा लेते हैं। दूध भी कोई आकर ले जाता है। काफी दूध तो घर में ही लग जाता है। बिलौना, घट्टी पीसना, खीच कूटना घर की औरतें कर लेती है। बाजरी की रोटी, मक्खन हमारे नाश्ते में हर रोज़ होता है। हरी सब्जियाँ, दाल, कढ़ी, राबड़ी, गुड़ खाने का मीनू में होता है। बाहर की कोई वस्तु न तो बड़े लोग और न ही बच्चे लाते हैं और खाते है। वे कहते हैं- ईश्वरकी कृपा है,अभी तक बहुओं ने हमारी परम्परा तोडऩे की बात नहीं कही। मोबाइल हमारे घर में नहीं है। कोई अर्जेन्ट होता है तो पड़ौसी का नम्बर देकर रखते हैं। कार्य की व्यस्तता के कारण ज्यादा रिश्तेदारी में आना जाना पसंद नहीं करते है। शादी-विवाह, मरण-मौत में यहां से एक दो जने ही जाते हैं। लङकों की शादी में भी 10-15 जनों से ज्यादा इकठ्ठे नहीं हुए। इनका परिवार महाराज के नाम से जाना जाता है। बहुत ही कम लोगों को पता है कि ये भी दाधीच ब्राह्मण है। ये सुखी और स्वस्थ है। आज तक हमारे परिवार में कोई अस्पताल में भर्ती नहीं हुआ। कभी कभार गाँव के वैद्यजी से पुङिया ले आते हैं। 

द्वारा ए, एन. करेशिया, जोधपुर  

2 टिप्‍पणियां:

  1. आज की आधुनिकता की दौड़ में खेती करना और संयुक्त परिवार दोनो ही बहुत बड़ी बात है । खेती करना हम लोगों के लिये अध्यापन व्यवसाय के बाद और अब के समय में बहुत ही सम्मानित कार्य है। शिक्षित होकर इस व्यवसाय में और भी उन्नति कर सकते हैं। आपने यह बहुत ही आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया है। साधुवाद । सरकार भी खेती को बहुत सुविधाए दे रही है। कृषि से संबंधित उद्योग भी लगाये जा सकते है । आने वाले समय में खानपान हेतु शुध्द वस्तुएं मिलना दुर्भर होती जा रही है । ऐेसे समय में स्वयं द्वारा उत्पादित वस्तुए सोने में सुगंधि का कार्य करेगी ।

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