रविवार, 4 अक्टूबर 2020

गौ माता की सेवा-जीवन भर मेवा

  


                                                    या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता। 

                                                नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः ।। 

    समस्त चराचर वसुधा में देवी का ही महात्म्य है। हम सब भी देवी के ही अंश है। बिना देवी की कृपा के कोई देवता प्रकट नहीं हो सकते। देवी के इस अंश को हम धरती माता, गौमाता एवं कन्या माता के साथ-साथ समस्त देवियों को दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, दधिमथी आदि कई माताओं के रूप में देखते हैं। यहाँ तक कि हम हमारे देश को भी भारत माँ के नाम से पुकारते हैं। माँ का रूप ही लावण्यमयी, ममतामयी, त्यागमयी, सरल एवं सादगी से परिपूर्ण है। माँ ही पालनहार है। समस्त लोक में माँ ही माँ का रूप दिखाई देता है। सियाराम मय सब जग जानि, करहूँ प्रणाम जोरि जुग पाणि।' यहाँ तक कि जल-थल-नभ में विचरण करने वाले समस्त प्राणी भी माँ से ही पल्लवित होते हैं। मनुष्य के साथ-साथ सभी जीवों का जीने का पूर्ण अधिकार है। वनस्पति से लेकर चींटी से हाथी तक सभी जीव माँ की कृपा से ही जीवित है।  

    हमने पूर्व के अंक में भी धरती माता, गौमाता एवं कन्यामाता के बारे में विशेष रूप से लिखा था। यदि मुझसे पूछा जाये कि देश कैसे खुशहाल और समृद्ध हो तो मैं यही कहूँगा कि मनुष्य के जीवन को पल्लवित एवं खुशहाल बनाने में गौ माता का ही विशेष स्थान है। मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त तक गौमाता का दूध-मूत्र-गोबर उपयोग में लिया जाता है। यहाँ तक कि गौमाता के दूध से बने हुए मक्खन, घी, दही, आदि से यह शरीर पुष्ट ही नहीं होता है, बल्कि शरीर को नीरोग रखने के लिए भी आयुर्वेदिक औषधियों में भी गौमाता के गौदुग्ध, गौघृत, गौमूत्र आदि का विशेष महत्व है। गौमाता के गोबर से घर पवित्र रहता है, यहाँ तक कि मनुष्य के देहावसान के समय में भी गौमाता के मल-मूत्र-गौबर से शमशान भूमि तक को पवित्र किया जाता है। 

    गौमाता तो साक्षात् कामधेनू है, मनोवांछित फल देने वाली है। उसमें सभी देवताओं का निवास है। भगवान राम का जन्म भी हआ तो उनके पूर्वज महाराज दिलीप की नन्दिनी की सेवा करने के कारण ही उनका वंश चला है। भगवान कृष्ण तो साक्षात गैया मैया के परम भक्त थे। उनको जब तक गैया मैया का माखन नहीं मिलता, तब तक वह चैन से नहीं बैठते थे। गौमाता को चराने में उनको बड़ा असीम आनन्द मिलता था। हमारी माँ दधिमथी माता भी प्रकट हुई तो उस समय भी ग्वाल-बाल धेनू ही चरा रहे थे। विश्व कल्याण के लिए हमारे महर्षि ने अस्थिदान दिया तो उसमें भी गौमाता ही सहायक बनी। 

    आज से पूर्व गाँवों में गौमाता से ही रोजगार था। संपूर्ण देश में गौमाता ही रोजगार की आधार स्तंभ थी। किसान गौवत्सों से कार्य करते थे। कई जातियां जैसे जाट, गूजर, यादव, नागर, मीणा आदि का मुख्य व्यवसाय कृषि एवं पशुपालन ही था। कृषि यंत्रों मरम्मत का कार्य खाती-लुहार करते थे। कृषि में कपास से बने वस्त्रों के लिए पिन्दाई, कताई, बुनाई, छपाई, सिलाई आदि के लिए कई जाति-उपजातियां पिन्दारे, जुलाहे, छीपा, दजी आदि को काम मिला हुआ था। मृत जानवरों के चमड़ों से निर्मित जूते, बेग, पर्स, चड़स आदि के लिए रेगर, मोची आदि को रोजगार मिला हुआ था। कन्यादान के साथ गौदान का रस्म था। गौदान की बहुलता के कारण मंदिरों में भी ब्राह्मणों द्वारा गोमाताओं का पालन होता था। और तो और आज भी हमारे हर त्यौंहार में भी गौमाता ही रची बसी है गौमाता के बिना गाँव की छवि अधूरी है। समस्त त्यौहारों में गौमाता की प्रतिच्छाया देखने को मिलती है। दीपावली पर हम गौमाता एवं वृषभराज को छापे लगाकर सजाते हैं । बछबारस पर आज भी गोमाता की पूजा करते हैं। 

    अंग्रेजी में उक्ति है- 'अर्ली ट्र बेड़, अली टू राईज' हमारे शास्त्रों में भी लिखा है रात को जल्दी सोने एवं जल्दी उठने  से लक्छमी का आगमन होता है, और तो और उषाकाल में उठने से शरीर निरोग तो रहता ही है। यदि घर में गौमाता होगी तो स्वतः ही उठना पडेगा। आपको उसकी पालना में मेहनत करनी होगी। अकेली गौमाता आपके पूरे परिवार को पाल लेगी। घर में दूध, दही, घी का भंडार भरा रहेगा। आपको किसी चिकित्सक के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। आज तो हम सब कुछ उल्टा कर रहे हैं। रात को देर से सोते हैं, फलतः सवेरे को भी देर तक उठते हैं। शौचालय हमने घर में ही बना लिये हैं। उस गंगा-यमुना-गोदावरी माने जाने वाली जलधारा को टैंक में समाहित कर उसमें मल-मूत्र त्यागते हैं। घर से बाहर जाने का तो हमने कोई विकल्प ही नहीं छोडा, फिर हम निरोग रहने की कामना करें तो यह कैसे संभव है? 

    हमने गौमाता को न पालने के सत्रह बहाने ढूंढ लिये हैं। हमारे पास वक्त नहीं है, हमारे पास जगह नहीं है, हमारे पास उसको खिलाने का साधन नहीं है। मैं पूछता हूँ, आप अपने बच्चों को कैसे पालते हैं ? उनको भी होते ही छोड़ दो मँझधार में। नहीं न! क्योंकि वे हमारे अपने है, और गौमाता परायी है। जबकि सुबह उठते ही तुम्हें चाय पीने के लिए दूध उसी का चाहिए। जब गौमाता ही नहीं है तो दूध कहाँ से मिलेगा। केवल और केवल गौमाता का दूध ही है, जो बल, बुद्धि, वैभव सब कुछ दे सकता है। भैंस का दूध पीने वालों के तो भरी जवानी में घुटने तक रुक जाते हैं। मनुष्य आलसी होकर दिन भर पाडे की तरह पड़ा रहता है । गौमाताके दूध में जो चंचलता है, वह उसके बछड़े में देख सकते हैं, वह कैसे चारों पैर उठाकर फुदकता है, उसको देखने मात्र से ही दिल आह्लादित हो जाता है। 

    समय के साथ आज हमारी गौमाता भी हमसे छिनती जा रही है। सारा चारागाह इन आतताई कसाइयों के अतिक्रमण के भेंट हो गये हैं। हमें ध्यान है कि घरों में सांड बाबा के आगमन पर रोठी दिये बिना उसको नहीं टरकाते थे। वह रोठी लेकर आगे निकल जाता था। गाय के गर्भवती होने पर सांड महाराज को भी 1-2 किलो गुड़ एवं तेल ग्वालों के साथ भेजकर खिलाया जाता था। ऐसी मान्यता थी, जिस खेत में सांड बाबा घुस जाते थे, उसमें फसले लहलहा उठती थी। सांड बाबा को भगाने की किसी में हिम्मत नहीं थी, यदि खेत मालिक ने उसे भगा भी दिया तो वह रात को सारे खेतों को छोड़कर उसी में आ धमकता था। अर्थात् मवेशियों को भी अपने परिवार की भांति ही मानते थे। कृषि के लिए प्रचुर मात्रा में देशी खाद इन मवेशियों से ही हो जाता था। आज हमने गौमाता को नकार दिया है तो हमारा भी गाँवों से पलायन हो गया है। बैलों के गले में बंधे धुंघरूओं की रुनझुन कहीं खो गई है। आज तो ये कसाई इन गौमाताओं के सामने ही उनके वत्सों का कत्ले आम कर रहे हैं। हम मूक बैठे हैं। हमारे जन प्रतिनिधि भी मूक बैठे हैं। संसद में उनको लड़ने से फुर्सत ही नहीं, जनता को क्या अनुशासन का पाठ पढ़ायेंगे? हमारे देश में हरित क्रांति एवं श्वेत क्रांति का सपना कैसे साकार करेंगे? 

    अब भी जगो, हे देश के कर्णधारों कुछ तो शर्म करो। आप संसद में लड़ने के लिए नहीं गए हैं। जनता को सुख-शांति देने के निदान के लिए भेजे गए हैं। नहीं चाहिए हमें ऐसी गर्वनमेंट जो सिर्फ और सिर्फ अपने गोले सेकती हो। इससे अच्छा तो हमारा जीविकोपार्जन हम ही कर सकते हैं। वैसे भी इस धरती पर हजारों जीव-जंतुओं का पालन उत्तम रीति से हो ही रहा है। आप वोट मांगते समय तो कैसे विनम्रता के अवतार बन जाते हैं और जब जनता आपसे सहायता की पुकार करें तो आपकी कैसे भृकुटियां तन जाती है। आपसे प्रार्थना है कि आप आगे आये, 'जीवो और जीने दो' के नारे को बुलन्द करे । गौमाता को प्राश्रय दें। सारे चारागाह मुक्त करवाये। यदि चारागाह ही नहीं रहेंगे तो हमारी गौमाता सड़कों पर रहेंगी। उसे कब तक घरों में नजरबंद किया जा सकता है। प्रत्येक ग्राम पंचायत में कांजी हाऊस को चालू करें ताकि ये गौमाता किसी कसाइयों के पाले नहीं पड़े। ये कसाई इनकी कभी पूँछ काट देते हैं, तो कभी टांगें तोड़ देते हैं। कत्लखानों को शीघ्र बंद करें। इन कसाईयों को कठोर दंड दें। गौमाता बच गई तो हमारा देश बच गया। आज हमारी सभी माताएँ बडी लाचार हो रही है। उसकी भावनात्मक सुधि ले। केवल पैसों का जाल फेंकने से कुछ नहीं होगा। प्रत्येक गौपालक को 500  रु. महीने भी दिया जाये तो कोई नुकसान नहीं है हमको। कम से कम हमें शुद्ध दूध तो मिलेगा ही। 

    याद रखो, जिन घरों में गौमाता है, उस घर की कन्यामाता ही आदर्श गृहणि बन सकती है। जिसने अपने मैके में गौमाता की सेवा करली। वह ससुराल में सास-ससुर एवं अपने पति की सेवा से क्या घबरायेगी। अपने घर में गौमाता के रहने पर उसको अपने पति की आमदनी का भी मोहताज नहीं होना पड़ेगा। गौमाता के कंडे से उसका चूल्हा जल जायेगा तो गौमाता के गौरस खाने एवं श्रम शक्ति करने से उनके बच्चे हृष्ट-पुष्ट बनेंगे। देश सुखी और संपन्न बनेगा।                                              ।। वन्दे मातरम् ।।

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1 टिप्पणी:

  1. प्रस्तुत लेख में गौ माता से धर्म संस्कृति परिवार स्वास्थ्य कृषि व समाज में हर दृष्टि से फायदे का विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है। हम किसी भी परिस्थिति हों गौ माता के लिये सहयोग करना चाहिये । इसमें हमारी स्वार्थ सिद्धि भी है। अब गौ माता को पालना हमारे घरों में बंद हो गया है । शहरों में रहने वाले परिवारों का तो इस बारे में सोचना ही दुर्लभ है। किंतु सुबह चाय के लिये दूध तो चाहिये ही। वह भी शुद्ध गाय का केमिकल रहित । पहले गांव में घर के पास बाड़े होते थे जिनमें कुण्ड व घास रखने के सफा होता जिसमें गायें रखते घर में खूब धीणा होता । अब भी बहुत से परिवार मिल जावेंगे। जहाँ ऐसा संभव नहीं वहां गौशाला भी ठीक है। तन मन धन से जितना संभव हो गौशालाओं को सहयोग करना चाहिये।

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