जगनाथपुरी में समुद्र को हिलोरों में खूब गोते लगाकर, मैं अपनी बगड़िया धर्मशाला में लौट गया। यह राजस्थान की एकमात्र धर्मशाला थी। अधिकतर राजस्थानी ही इस धर्मशाला में रुकते थे। उत्तमचंद छड़ी वाला पुजारी अपने जजमानों को इसी धर्मशाला से ढूंढ-ढूंढ कर ले जाता था। मेरे वापसी को गाड़ी रात 9 बजे थी अभी 3-4 घंटे का समय था। धर्मशाला के बीचों-बीच एक मात्र था। वहाँ काफी देर देर से तकरीबन 20 वर्ष की एक लड़की गुमसुम बैठी हुई थी, शायद वह यहाँ के पुजारी की बेटी होगी। मैंने सोचा चलो, इससे बात ही की जाये, तब तक समय भी कट जायेगा।
मैंने पूछा-क्या तुम इसी मंदिर में रहती हो?
उसने कहा-नहीं, हम तो यहाँ घूमने आये हैं।
मैंने पूछा- तुम कहाँ से आई हो?
उसने कहा-मुरादाबाद(यू.पी.) से।
उसने पूछा- आप भी यहाँ घूमने आये हैं।
मैंने कहा-हाँ, हम राजस्थान से आये हैं।
मैंने पूछा - तुम्हारी जाति?
उसने कहा-हम धोबी है।
उसने पूछ-आप?
मैंने कहा-हम ब्राह्मण है, (पुत्र की ओर इशारा करते हुए मेरे साथ एक भैया भी है।
मैंने पूछा- तुम्हारे साथ और भी हैं?
उसने कहा-हम सात-आठ जने साथ हैं।
मैंने पूछ-तुम्हारे माता-पिता भी साथ हैं ?
उसने कहा-पिताजी को गुजरे सात-आठ वर्ष हो गये और मुरादाबाद में ही है।
(मेरी रूचि बढ़ रही थी, आखिर यह इतनी दूर किसके साथ आई है)
मैंने पूछा-यहाँ तुम्हारे परिवार के कौन-कौन साथ हैं?
उसने कहा-मैं मेरी दीदी के साथ आयी हूँ। मेरी दीदी के स्टॉफ वाले भी हमारे साथ हैं।
मैंने पूछा-क्या तुम्हारी दीदी कोई नौकरी करती है?
उसने कहा-हाँ, वह मेरे पिताजी की जगह हो लगी है।
मैंने पूछा-क्या तुम्हारे भाई नहीं हैं?
उसने कहा-नहीं, हम दो बहिनें ही हैं।
मैंने पूछा-पिताजी को क्या तकलीफ थी?
उसने कहा- उन्हें कैंसर था। (मैं बुदबुदा रहा था-राम, राम, राम भगवान बचाये कैंसर से)
मैंने पूछा-वे किस डिपार्टमेंट में थे?
उसने कहा-वे पुलिस में थे।
मैने कहा-इस डिपार्टमेंट में माँ को लगना चाहिए था।
उसने कहा-क्या करे, माँ कम पढ़ी-लिखी थी, चपरासी बनती। दीदी उस समय कॉलेज में पढ़ रही थी कॉन्सटेबल बन गई।
मैंने पूछा-दीदी की उम्र?
उसने कहा-लगभग 30-32 वर्ष।
मैंने पूछा-दीदी की शादी हो गई?
उसने कहा-वह शादो कैसे कर सकती है? पिताजी की जगह लगी है। हमारे घर का खर्चा वही उठाती है। माँ कहती है कि तेरी शादी भी वही करायेगी। (मेरे दिल में शूल चुभी, कैसे हैं ये लोग, अपनी सुकोमल पुत्रियों का समय पर विवाह तक नहीं करवा सके।)
मैंने कहा-तुम्हें तरस नहीं आता कि दीदी का भी परिवार होना चाहिए। आज उसके बच्चे होते तुम्हें मौसी व तुम्हारी माताजी को नानी कहकर पुकारते। तुम्हारी दीदी का भी मन लगा रहता।
मैंने पूछा-तुम्हारी उम्र?
उसने कहा-छब्बीस वर्ष।
फिर देर किस बात की। विवाह तो 18-20 वर्ष में ही हो जाना चाहिए। मैं तो सोच रहा था कि शायद तुम 18-20 वर्ष की होगी। (वह मौन हो गई, मानो दीदी की तकलीफ उसके दिल को छू गई।)
होना तो यह चाहिए था कि माँ सर्विस करती, बच्चियों का समय पर हाथ पीला करती। उनका परिवार होता। उसके भी पुत्र के समान जंवाईराज खड़े हो जाते।
चिन्तन-आज स्थिति ऐसी है कि अपने पुत्रों के छोटे होने के कारण अपने पति की मृत्युपरांत पति की जगह पली को सर्विस करनी पड़ती है और जब उनके पुत्र बड़े हो जाते हैं तो माँ को कमा-कमा कर उन बालिग पुत्रों का भरण-पोषण करना पड़ता है। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि पुत्रों के बालिग होने पर माँ यदि चाहे तो परिवार में से किसी एक पुत्र को उसकी जगह पुनः नौकरी लगा ली जाये तो माँ भी राहत की सांस ले सके तथा उस पुत्र को नौकरी लगने के कारण उसको समय पर शादी हो सके और वह अपना परिवार चला सकें।
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