किसान की करुण चीत्कार, धरती कर रही है पुकार।
फटे चिथड़ों में वह लिपटा, पेट की आग में वह सिमटा।
यंत्रीकरण ने बना दिया है उसको अंधा।
नहीं जानता वह किसी का गौरखधंधा।
माँ की कोख में उसने जहर घोला।
कैसे मिलेगा अमृत, नहीं जानता वह भोला।
देखो मेरा बेटा कैसा बदनाम हुआ।
जानबूझकर भी कैसा लहुलुहान हुआ।
मेरी आँख का तारा, मुझको कितना प्यारा था।
इस धरती का वह सबका राजदुलारा था।
ढौर-ढंगर और गाये उसकी थाती थी।
दूध-दही, हरी सब्जियां ही उसको भाती थी।
इस जमाने ने देखो कैसा बेहाल किया।
श्रम से विमुख कर कैसा निढाल किया।
उसको देखकर मेरी छाती फटी जाती है।
मुझ 'माँ' की ममता मरी जाती है।
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