सोमवार, 25 मई 2020

गौ महिमा



हमारे देश भारतवर्ष में प्राचीनकाल से ही गौ-माता की महिमा अपरम्पार रही है। शास्त्रों में गौमाता को साक्षात् कामधेनू अर्थात् मनवांछित फल देने वाली माना गया है। यहाँ तक कि भगवान कृष्ण को भी गायों की सेवा करने के कारण गोपालकृष्ण ही कहा जाता है। इसी कारण गोपालकष्ण माखनचोर की छवि गायों से घिरे हुए होने के कारण ही निराली है। बलराम के उपनाम हलधर में भी गौमाता से कितनी सन्निकटता दिखाई देती है। भगवान शिव भी गौवत्स नन्दी से ही शोभायमान लगते हैं। रघु वंश के राजा दिलीप को शापोद्धार से बचने के लिए कामधेनू की पुत्री नन्दिनी की सेवा से ही मुक्ति मिली थी। और तो और माँ दधिमथी का प्रादुर्भाव भी जंगल में ग्वालों के द्वारा गौओं को चराते हुए ही हुआ है। महान् त्यागी महर्षि दधीचि के विश्व कल्याण के लिए अस्थियों के उत्सर्ग में भी गौमाता का सहयोग ही दिखाई देता है। यही नहीं हमारे त्यौहारों में भी गौमाता की प्रतिच्छाया स्पष्टतः दिखाई देती है। बछबारस के दिन गौमाता की विशेष रूप से पूजा की जाती है। दीपावली के दूसरे दिन गौमाता के साथ-साथ बैलों को भी विभिन्न प्रकार से सजाकर उनकी पूजा की जाती है। घर के आंगन बिना गोबर के पवित्र नहीं माने जाते तथा बिना गोबर एवं गोमूत्र के हर मांगलिक कार्य अधूरे हैं। जन्मोत्सव से मृत्यु तक जीवन के सभी संस्कार बिना गौमूत्र एवं गोबर के परिपूर्ण नहीं माने जाते। गौमूत्र पान के बिना यज्ञोपवीत संस्कार भी अधूरा है। यहाँ तक कि यज्ञ-अनुष्ठान में भी गौमाता के कण्डे ही काम में आते हैं। गौधूलि वेला का अपने आप में कम महत्त्व नहीं है। शास्त्रों में लिखा है कि गोधूलि की रज से मनुष्य के सारे पाप क्षय हो जाते हैं।

गौरस के बिना किसी भी त्यौहार की कल्पना बेमानी है। हर त्यौहार में लगाई जाने वाली धूप में गौघृत ही काम में आता है। वैज्ञानिक भी मानते हैं कि यज्ञों में आहूति दिये जाने वाले गौघृत से वायुमंडल स्वच्छ होता है एवं कई बीमारियों के कृमि समूल नष्ट होते हैं। त्योहारों में बनाई जाने वाली मिठाइयां भी गौरस-दध, दही, घी, मक्खन से ही बनती है। आयुर्वेद में गौ-तक्र (छाछ). गौघृत गौदूग्ध के साथ ही दवा पान करवाई जाती है। आयुर्वेद में गौ-तक्र की महिमा अपार है। पंचामृत भी गौरस-दुग्ध, दही, घृत से ही बनता है। गौदुग्ध बालक, युवा, वृद्ध सबके लिए सुपाच्य होता है।
हमारे जीवन के रग-रग में रची-बसी पर्यावरण की सेतु गौमाता आज ढहने के कगार पर है। अब न बैलों की रुनझुन सुनाई देती है, न बैलगाडियों की गड़गड़ाहट। न गायों के घेर दिखाई देते हैं और न उनके चारागाह। जिन-जिन घरों में गौमाता के दस-बीस खोज (संख्या) हुआ करते थे, आज वह एक गाय रखने से भी कतरा रहे हैं। मंदिर के पुजारी गोदान लेने से स्पष्टतः मना करते हुए देखे जा सकते हैं। किसानों के मित्र वृषराज की स्थिति बड़ी दुःखद है। बेरोजगार होकर हजारों बैल-बछड़े इस समय कत्लखाने की भेंट चढ़ रहे हैं, जिन्हें उनकी निरीह, मक गौमाता बेबस, बेदम होकर देख रही हैं। आज पशु मेलों में भी मरियलमरियल से बैल नजर आते हैं जिनको समय पर चारा-पानी नहीं मिलता। पशु मेलों की वह रौनक बीते दिनों की यादभर रह गई है।
कल तक जो किसान गायों बैलों को सहलाते थे, मशीनीकरण ने उनकी सारी संवेदना ही छीन ली। आज वे उन निरीह पशुओं को घृणा से देखने लगे हैं। भूख-प्यास से संत्रस्त भटके हुए जानवरों की पूंछ-पैरों को काटकर उनकी जान के दुश्मन बन गये हैं। पशुओं के मलमूत्र से बनी हुई खाद पर से उनका विश्वास उठ गया है। उनको रासायनिक खाद डाले बिना चैन नहीं पड़ता, चाहे उससे स्वयं की या दूसरों की जान ही क्यों न चली जाये। वह इतना लालची हो गया है कि धरती माता की कोख से सब कुछ शीघ्रता से वसूल कर लेना चाहता है। धरती माता ने भी बिना गौ मल-मूत्र के उसको ठेंगा दिखाना शुरु कर दिया है। आज मशीनीकरण ने पर्यावरण को नष्ट-भ्रष्ट कर सबके जीवन को खतरे में डाल दिया है।
पर्यावरण की प्रदूषणता से आज वह जल से भी मोहताज हुआ जा रहा है। अब न उसके पास गौधन है, न गौ मल-मूत्र । न भूमि में उर्वरकता उत्पन्न होती है, न पर्याप्त खद्यान्न । अब वह बढ़ती हुई जनसंख्या को कोस रहा है। मशीनीकर के कुप्रभाव के कारण मनुष्य व पशुओं की श्रमशक्ति निरर्थक हो जाने से अब उसका अवमूल्यन हो गया है, जबकि बढ़ती हुई श्रम शक्ति का दोहन करने से हम आत्म निर्भर बनने के साथ-साथ बुलन्दियों के शिखर को छू सकते हैं।
हे मेरे देशवासियों! अब भी समय है, नाजुक समय की नजाकत को समझते हुए गौमाता को अंगीकार कर लो। यह हम सबकी पालनहार है, क्षमामयी है, पाप मोचनी है। देव वंदन करने योग्य गौमाता से विलग न रहे। इस समय इसकी रक्षा करें। अकाल की विभिषिका को देखते हुए अपने हिस्से में से कुछ हिस्सा इसके पालनार्थ अवश्य निकालें। इस गौमाता के अनादर के कारण ही हमारे ऊपर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। शास्त्रों में कहा गया है-
"गोषु भक्तश्च लभते यद् यदिच्छति मानवः। स्त्रियोपि भक्ता या गोषुताश्च काममवाप्नुयुः।। पुत्रार्थी लभते पुत्रं कन्यार्थी तामवाप्नुयात्। धनार्थी लभते वित्तं धमार्थी धर्ममाप्नुयात्।।विद्यार्थी चाप्नुयाद् विद्यां सुखार्थी प्राप्नुयात् सुखं। न किचिंद् दुर्लभं चैव गवां भक्तस्य भारत।"
(महाभारत अनु. 83, 50-52)
अर्थात् वह गौभक्त मनुष्य पुत्र, धन, विद्या, सुख आदि जिस-जिस वस्तु की इच्छा करता है, वह सब उसे प्राप्त हो जाती है। उसके लिए कोई भी वस्तु दुर्लभ नहीं होती।



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