मनुष्य एक पल के लिए भी बिना कर्म किये नहीं रह सकता। चाहे उसके कर्म सकारात्मक हो या नकारात्मक, ये सब उसकी मति पर निर्भर करता है और मति का मार्गदर्शक उसके संस्कार, उसकी संगति करती है, आगे जाकर वही उसकी नियति बन जाती है। इस बात पर भी मेरी दृढ़ मान्यता है कि यदि उसे सत्संगति मिलती है तो उसके विचारों का प्रवाह सुमति की ओर बढ़ जाता है, परंतु सतसंगति भी बिना हरिकृपा से संभव नहीं है।
संसार में कोरोना के कहर के कारण लॉक डाऊन भी ऐसा ही एक सुअवसर था, जिसमें मनुष्य अपने ही घर में नजरबंद हो गया था। कोई रामायण-महाभारत देख रहा था तो कोई अपनी मनपसंद पिच्चर। कोई मोबाईल पर गेम खेल रहा था तो कोई गूगल पर नई चीज सीख रहा था। कोई कविताओं को जन्म दे रहा था, तो कोई कहानियों का संसार रच रहा था। कोई अपने घर में नर्सरी लगा रहा था तो कोई घर में नई-नई रेसीपी बना रहा था। जब सारे संसार में कारोना के कहर के कारण मौत का ताडंव देखने-सुनने को मिल रहा था तो सबकी नजर ऑन लाईन कार्य करने पर थी। और हुआ भी, सारा राजकाज ऑन लाईन हो गया। महानगरों में भीड़तंत्र एकदम छट गई। सबको अपने गाँव प्यारे लगने लग गये। सबको लगने लग गया कि जान है तो जहान है। और इसका परिणाम भी सुखद हुआ कि पर्यावरण में ताजगी आ गई। नदियों को पानी निर्मल हो गया। जंगली जीव जंतुओं में बहार आ गई। एक्सीडेन्टों एवं अन्य व्यसनों से मौत का आकड़ा नीचे गिर गया। सामान्य प्रसव होने लगे। भ्रष्टाचार का पारा भी नीचे जम गया। मुकदमे बाजी कम हो गई। प्रशासन ने भी एक कदम बढ़कर सबको घर बैठे अपनी ओर से मेडीकल एवं राशन की सुविधा देनी प्रारंभ की। परिणाम यह हुआ कि समस्त मानवता को बचाने के लिए भामाशाहों की लाईन लग गई।
दाधीच सुबोधिनी भी ऐसे अवसर को भुनाने की तलाश में थी। विचारों का प्रवाह थमने का नाम नहीं ले रहा था। स्वयं के संसाधन के बिना पत्र-पत्रिकाएँ भी अवरुद्ध हो गई थी। जेहन में एक ही बात उमड़ रही थी कि नोटबंदी के कारण ही कैशलेश पेमन्ट का प्रचलन बढ़ा और आज स्वयं उपभोक्ता ही बैंक मैनेजर बन गया। अपना कैश कभी भी, कहीं भी जितना चाहे किसी भी व्यक्ति को घर बैठे एक ही क्लिक पर ट्रांसफर कर सकता है, उसे एटीएम तक जाने की जरूरत नहीं है तो क्यों नहीं पाठकों को भी घर बैठे उनकी पत्रिका ऑन लाईन अपने ही मोबाईल पर पीडीएफ के रूप में पढऩे को मिल जाये। यद्यपि मन में कई प्रकार के मत-मतान्तर भी थे। जैसे-ऑन लाईन संसार में पत्रिका की महत्ता कम हो जाना, पत्रिका की सदस्यता-दर कम हो जाना, विज्ञापनों का अवरुद्ध हो जाना। पाठकों को भौतिक रूप में अपनी सदस्यता राशि का मूल्य नहीं मिलना आदि। पर पत्रिकाओं का प्रवाह तो चलना ही था, हाँ, लॉक डाऊन की समयावधि में अवश्य अनिश्चितता प्रतीत हो रही थी। इस संदर्भ में पाठकों से भी मार्गदर्शन लिया गया। अधिकाँश विचारकों का यही विचार आया कि यह आज की समय की आवश्यकता है, इसे शीघ्र जारी करें, किसी ने कहा अपने विवेक से जो भी अच्छा हो, उसे शीघ्र क्रियान्वित करें।
हमने यह भी विचार किया कि कैशलैश पेमेन्ट होने के बावजूद भी पैसे की महत्ता कम नहीं हो पाई तो पत्रिका की क्यों कर होगी? यद्यपि सर्वप्रथम लोगों का कैशलेश पेमेन्ट में विश्वास कम ही रहा, लेकिन आज यह समय की आवश्यकता है। जेब में पैसा नहीं होने से लूटपाट का भी डर कम हो गया है, हाँ यह अवश्य है कि आपको अपने ओटीपी या गोपनीय पिन गुप्त रखने पडेंगे, जिसके लिए बैंक भी आपको सावचेत करता रहता है।
तब हमने शीघ्र 22 मार्च, 2020 के बाद ऑन लाईन पत्रिका भेजने पर काम करना प्रारंभ किया और उसका अंजाम यह हुआ कि आज subodhini.blogspot.com के माध्यम से माह मार्च, 20 में 1, अप्रेल में 8, मई में 15, जून में 3(अविरल)आध्यात्मिक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, गौमाता(एक जीवंत कहानी), मासिक पत्रिका, लेख एवं वीडियों आदि के रूप में पाठकों को ताजा प्रेरणास्पद सामग्री पढऩे को मिल रही है। हमें खुशी है कि सोश्यल नेटवर्क पर वाटस्प, फेसबुक, ट्विटर, पिनट्रेस्ट आदि के माध्यम से केवल एक ही क्लिक पर पूरे वल्र्ड में आपके विचारों की रोचक पाठ्य सामग्री उनके सामने पहुँच रही है और साथ ही उनके कॉमेन्ट, उनकी विचारधाराएँ भी ऑनलाईन पत्रिका के माध्यम से उन तक पहुँचना संभव हो पाई है। यही कारण है कि आज हमारे देश के अलावा यूनाइटेड स्टेट्स, चेकिया(चेकोस्लोवाकिया), यूनाईटेड अरब अमीरात, अर्जेन्टाईना, स्लोवाकिया, केनेड़ा, जर्मनी, ताईवान एवं अन्य सात कन्ट्री भी इससे जुड़ चुके हैं। हर रोज उनके व्यू हमें देखने को मिल रहे हैं। हमारा उद्देश्य आपके विचारों का अधिकाधिक प्रसार करना ही है। विज्ञापन आना या नहीं आना कोई मायना नहीं रखता है, हाँ यह अवश्य है इससे आर्थिक स्तंभ में मजबूती अवश्य आती है।
तब हमने शीघ्र 22 मार्च, 2020 के बाद ऑन लाईन पत्रिका भेजने पर काम करना प्रारंभ किया और उसका अंजाम यह हुआ कि आज subodhini.blogspot.com के माध्यम से माह मार्च, 20 में 1, अप्रेल में 8, मई में 15, जून में 3(अविरल)आध्यात्मिक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, गौमाता(एक जीवंत कहानी), मासिक पत्रिका, लेख एवं वीडियों आदि के रूप में पाठकों को ताजा प्रेरणास्पद सामग्री पढऩे को मिल रही है। हमें खुशी है कि सोश्यल नेटवर्क पर वाटस्प, फेसबुक, ट्विटर, पिनट्रेस्ट आदि के माध्यम से केवल एक ही क्लिक पर पूरे वल्र्ड में आपके विचारों की रोचक पाठ्य सामग्री उनके सामने पहुँच रही है और साथ ही उनके कॉमेन्ट, उनकी विचारधाराएँ भी ऑनलाईन पत्रिका के माध्यम से उन तक पहुँचना संभव हो पाई है। यही कारण है कि आज हमारे देश के अलावा यूनाइटेड स्टेट्स, चेकिया(चेकोस्लोवाकिया), यूनाईटेड अरब अमीरात, अर्जेन्टाईना, स्लोवाकिया, केनेड़ा, जर्मनी, ताईवान एवं अन्य सात कन्ट्री भी इससे जुड़ चुके हैं। हर रोज उनके व्यू हमें देखने को मिल रहे हैं। हमारा उद्देश्य आपके विचारों का अधिकाधिक प्रसार करना ही है। विज्ञापन आना या नहीं आना कोई मायना नहीं रखता है, हाँ यह अवश्य है इससे आर्थिक स्तंभ में मजबूती अवश्य आती है।
ऑनलाईन एवं भौतिक पत्रिका में अंतर एवं आवश्यकता-मैं मानता हूँ कि घर में जब पत्रिका आती है तो हमारा चेहरा खिल जाता है, नई-नई सूचनाएँ एवं जानकारियाँ देखने को मिल जाती है। अन्य आगंतुक व्यक्ति भी उससे रुबरू हो जाता है, पर जब पत्रिका के लिए पैसा खर्च करने का वक्त आता है तो अच्छे-अच्छे व्यक्ति भी कन्नी काटने लग जाते हैं। साथ ही प्रशासनिक डाक विभाग की लापरवाही के कारण पत्र-पत्रिकाएँ नहीं पहुँचना आम शिकायत हो जाती है, यद्यपि कार्यालय की ओर से प्रशासन को शिकायत भी की जाती है, कई बार सही रेसपोंस भी मिलता है। साथ ही कभी-कभी घर के किसी व्यक्ति के पास पत्रिका पहुँच भी जाती है तथा इधर-उधर रखने पर पत्रिका नहीं मिलने पर सीधे दाधीच सुबोधिनी कार्यालय पर फोन खटखटा देते हैं, यद्यपि हमारे पास पत्रिका बहुतायत में रहती है और हमें कोई ऐतराज भी नहीं है, पर हम चाहते हैं कि आप पत्रिका ही नहीं, लेटेस्ट अन्य कहानियाँ, कविताएँ, बायोडाटा परिवार में आप अकेले नहीं, सभी व्यक्ति बिना किसी शुल्क के मोबाईल पर पढ़ें, ताकि समाज के विचारों का प्रवाह अकधिकाधिक प्रसारित हा़ेे।
आज स्मार्ट फोन घर में करीब-करीब परिवार के हर सदस्य के पास हो गया है। वह इसके माध्यम से जब चाहे, जहाँ कहीं, किसी भी वक्त पत्रिका पढ़ सकता है। कई बार देखने में आया है कि पत्रिकाएँ फट जाती है और वह रोचक सामग्री पढऩे से आप वंचित हो जाते हैं, ऐसी स्थिति में भी वह पाठ्य सामग्री हमेशा-हमेशा के लिए आपके मोबाईल पर सुरक्षित भी रहती है। यदि आपने नया मोबाईल खरीद भी लिया हो तो भी आपकी पत्रिका आपके जेब में ही रहती है। और तो और कार्यालय से पीडीफ फाईल के अतिरिक्त अन्य पाठ्य सामग्री में किया जाने वाला परिवर्तन/करेक्षन भी नये अपडेट के रूप में आपके पास हमेशा आता रहता है, जिसे आप बखूबी देख सकते हैं, हाथो-हाथ प्रतिक्रिया लिख सकते हो। और यह आज के समय की आवश्यकता भी है।
पत्रिका कैसे खोले-यह सहज है। आप के पास यहाँ से भेजे गए किसी भी subodhini.blogspot.com लिंक पर क्लिक करते ही स्वत: ही वह साईट ओपन हो जाती है, जिसमें करंट कंटेंट दिया हुआ होता है। यदि आप पिछले कन्टेंट को भी देखना चाहते हैं तो ऊपर दिये हुए लेबल में से जिस पर भी क्लिक करेंगे, वह कन्टेंट अपको दिख जायेगा। यदि पत्रिका ही देखना चाहेंगे तो आपको वहाँ एक लिंक नजर आयेगा, जिस पर क्लिक करते ही पूरी पत्रिका पीडीफ के रूप में दिखने लगेगी। समय के साथ धीरे-धीरे सब कुछ समझ में आ जाता है।
असमजंस-कुछ व्यक्तियों की सोच होती है कि कहीं कोई पैसा नहीं कट जाये, पर अच्छे-अच्छे पंडितों के लिए भी वाट्सप एवं ये सोश्यल नेटवर्क वरदान बनकर उभरे हैं। आज बड़े से बड़ा पांडित भी किसी व्यक्ति की कुंडली शीघ्रताशीघ्र उससे निकाल देता है। आज इसी नेटवर्क के बलबूते ऑनलाईन पढ़ाई, ऑनलाईन बैंकिंग, ऑनलाईन कोर्ट, ऑनलाईन शॉपिंग, ऑनलाईन टिकट आदि होने लगे हैं और तो और इस कोरोना काल में वीडिय़ो कान्फ्रेसिंग के माध्यम से बड़े-बड़े राजनेताओं के विचार जनता तक पहुँच रहे हैं।
मैं मानता हूँ कि ऑनलाईन संसार बहुत विस्तृत है, क्योंकर कोई आपकी पत्रिका ही पढ़ेगा, पर जब आपके कन्टेंट में कोई दम हो, आप में अथाह श्रम शक्ति हो और आप दुनियाँ से हटकर कोई चीज परोस रहे हो, तो निश्चित ही आपकी मौलिकता उसको अवश्य भायेगी। इसके लिए अविरल श्रम साधना करनी होती है।
हमारी आकाँक्षा है कि भौतिक रूप में तो आपको पत्रिका मिलेगी ही, साथ ही अपने मिलने वाले हर सदस्य को शेयर कर ऑन लाईन पत्रिका देखने की टेक्रिक समझाये। बहुत जल्द हम आपके द्वारा भेजे गये समाचार, फोटोएँ एवं वीडिय़ो को भी शीघ्र इस ऑन लाईन माध्यम से इस वसुधा की समस्त जनता और राजनेताओं को दिखाकर आगाह करते रहेंगे।
अपनी प्रतिक्रिया अवश्य लिखें एवं दुसरो को भी शेयर करें।
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