रविवार, 20 सितंबर 2020

नारी अबला या सबला ?

 




                                           कबिरा उनकी क्या गति, जो नित नारी के संग ।

                                                नारी की छाया परत, अन्धा होत भुजंग ।।

कबीर दास जी ने सही कहा है कि नारी चीज ही ऐसी है जो नारी के साथ रहते हैं, उनकी मति तो मारी गई है या यूँ कहे चीर हरण हो गई है, वो तो बेहाल हैं। रात दिन सांसारिक मकड़जाल में ऐसे उलझ रखे हैं कि उनके रोजमर्रा के काम से फुर्सत ही नहीं। रात दिन काम क्रोध माया मोह लोभ में ही जी रहे हैं। कोई इससे छुटकारा चाहे तो मिल नहीं सकता, कोई इससे दूर भागना चाहे तो भाग नहीं सकता, वह नारी भी बैरिन की भॉति छाया दर छाया उससे चिपकी रहती है, मृत्यु से पहले कोई मुक्ति नहीं। फिर भी वह मुक्ति वाहनी है। भवसागर तारक है। उसकी आड़़ मे बड़े-बड़े राजा महाराजा एक दूसरे के साम्राज्य को हड़प कर भी उन महारानियों ने रूपजाल में अभिमंत्रित होकर उस साम्राज्य को तिनके की भॉति छोड़ देते थे। देखा जाये तो सारी सत्ता  नारी प्रधान ही थी और आज भी है। आज हम कितना भी कहे कि नारी अबला है, उसकी अस्मत लुट रही है, इससे भयंकर झूँठ हो ही नहीं सकता, वह पहले भी सबला थी और आज भी है। अच्छे-अच्छे के छक्के छूटते देखें है। आज भी उसी की चल रही है। वह कह दे कि मैं इसी के साथ रहूँगी, इसी के साथ जाऊँगी चाहे वो कितना ही गैर बिरादरी हो, कितना भी लुच्चा लफंगा हो, कोर्ट कचहरी उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती, बल्कि उल्टा उसी के पक्ष में फैसला सुनाएगी। आज तो सरकारें अन्तर्जातीय विवाह करने पर लाखों रूपये देने पर आयादा है।  आज कलयुग है, नारी स्वतंत्र विचरण कर रही है। जिस अंधेरे में हम आज भी अकेले जाने से कतराते हैं। आज वह रात के बारह-एक बजे तक क्लबों में थिरक रही है। आज तो वह रात पारी ही नहीं, सेना के मोरचे पर भी डटी हुई है। कोर्ट कचहरिया, सरकार सब उसी के पक्ष में हैं।

               आज बड़े-बड़े संत, राजनेता, जज, पत्रकार, शिक्षक, सभी इसी नारी के शिकंजे में है। संतों की तो बाढ़ आ रही है। ऐसे-ऐसे संत जिनके घर-दूकानों में फोटो लगाकर माला पहनाकर आरती उतारी जाती है, कार्य का गणेशाय भी उनके दर्शनों से होता था, नियति की बात है। आज हवालातों की हवा खा रहे हैं, वहां उनकी आरती उतर रही है। बेचारे शिष्य या यूँ कहे अन्ध भक्त अगले-बगले झाँक रहे हैं, किसको दोष दें,, वे गलत थे कि संत गलत है। ऐसे संत जिन्होंने हजारों की मदिरा छुड़वा दी, उनके आशीर्वाद से हजारों के रोग दोष मिट गये। जिन्होंने बड़ी-बड़ी पोथियां प्रकाशित करवा दी, जिनका विमोचन भी बड़े-बड़े सत्तोधीशों द्वारा हुआ। जिनके आशीर्वाद मात्र से कई बांझ पुत्रवती हो गई। आज नारी व माया के जाल मे फंस चुके हैं। उनमें सन्त आशाराम, सन्त रामरहीम, सन्त रामपाल कई संतों की श्रृखंला है, किसी के नाम खुले हैं तो किसी के नाम अधखुले हैं। कुछ कह रहे हैं, अभी राम नाम के और संत जेल जायेंगे, हमारे हमारे यहाँ तो संस्कृति ही ऐसी है, सभी पुत्र-पुत्रादि का नाम राम-कृष्ण एवं देवियों के नाम पर ही आधारित है। देर-सबेर सभी संत कारागृह में बंदी होंगे। असंत आवारा-अल्हड़ होकर मुक्त रहेंगे। नसीब अपना-अपना एक जरा सी चूक आदमी को कहाँ से कहाँ पटकनी दे देती है।

प्राचीन काल से ही हमारे धर्मशास्त्र तो भरे पड़े हैं। जब कोई जोगी-जति, राजा-महाराजा कोई बड़ी तपस्या में लीन रहता था, तो देवराज इन्द्र उसकी तपस्या को डिगाने के लिए बड़ी-बड़ी कामादग्ध अफ्सराओं/रतियों को उनके पास भेजता था जो अपने कामबान नैत्र, सुगंधित शरीर की भाव-भंगिया द्वारा उनकी तपस्या तक को डि़गा देती थी। स्वयं भगवान भोलेनाथ भी इससे अछुते नहीं रहे थे, जब कामदेव ने उनकी एकाग्रता को भंग कर दी, वह महज एक दुर्योग ही था। जब त्रिनैत्र के कपाट खुलने से कामदेव उसी पल भस्मीभूत हो गया था। पर यहाँ यह भी उल्लेखित करना चाहूँगा कि स्वयं शिव सृष्टि के संघारक थे। उनकी भृकुटी या यूँ क्हे वे सत्ताधीश थे और है। उनकी भृकुटी से ही इन्द्रासन डोल जाता था।

    प्राचीन काल में विष कन्यायें भी हुआ करती थी, जिन्हें राजा महाराजा अपनें यहाँ पालते थे। समय आने पर उन्हें दूसरों का राज्य हड़पने, दूसरों का वैभव पाने, एवं दूसरों को नीचा दिखाने के लिए उन विष कन्याओं को वहाँ भेज कर प्रयोग करते थे। 

    खैर मैं बहुत आगे निकल गया, अभी कबीर दास जी की दूसरी पंक्ति की मीमांसा तो हो ही नहीं सकी। नारी का रूप लावण्य ही ऐसा है। अच्छे-अच्छे की काया डोलने लग जाती है, जहरीला नाग का नथुना भी नाकाम हो जाता है। हमारी दादी बताया करती थी कि एक काला साँप पड़ोस की किसी गर्भवती स्त्री की छाया मात्र पड़ने मात्र से वह अन्धा हो गया और जब तक उस गर्भिणी स्त्री का प्रसव नहीं हुआ वह रसोई मे ही सिमटा रहता। प्रारंभ में तो हमें डर लगता पर हम भी उसकी लाचारी समझ गये थे। वह किसी को कुछ नहीं कहता। या यूँ कहे एक तरफ से हमारे से हिल मिल गया था। अर्थात् कितना ही बड़ा दुष्ट पुरुष हो, कुटनीतिक हो बड़े-बड़े दिग्गजों का दिमाग डोलने लग जाता है, कभी-कभी सत्तर साल के दिग्गज राजनेता भी चालीस साल की नारी के रूप लावण्य में फंस जाता है, कभी कोई शादी कर लेता है तो कभी कोई उसको टुकड़ा बिखेरकर कोर्ट कचहरी से बच जाता है। सब कुछ समझौता नारी ही करती है, पुरुष तो उसके सामने बौना ही रहता है। वह चाहे तो किसी को बचा दे, वह चाहे तो किसी को फाँसी के फंदे पर लटका दे। 

नारी का क्या गया, जब तक मन था, पुरुष को खिलौना बना लिया, जब मन भरा, पुरूष एवं उसके परिवार पर दहेज, बलात्कार, नामर्दी आदि की छाप छोड़ दी, आज तो कोर्ट भी मान रही है कि दहेज के निब्बे प्रतिशत मामले झूँठे ही होते हैं। इज्जत, चरित्र बहुत दूर की बात हो गई है। आज हिन्दु संस्कृति जर्रा-जर्रा होती जा रही है। 

हे माँ! मैंने कुछ ज्यादा ही कह दिया है, नारी में तेरा अंश है तो क्या पुरुष में तेरा अंश नहीं है? फिर पुरुष के मत्थे यह अनाचार क्यों? पुरुष को रात-दिन चाकरी करवाकर भी तू तेरे परिजन का पेट भरवा सकती है, फिर क्यों तू अपनी छाया को आर्थिक दलदल मे धकेल रही है। हे माँ तेरे में वह ताकत है, तेरी एक फटकार मात्र से मोहासिक्त मंद पुरुष को तू एक पल मे तुलसी, कालीदास, कबीर आदि विद्वत संत बना सकती है। तेरे में वह शक्ति है वह अच्छे-अच्छे को नाच नचा देती है। संत रसखान ने बड़ा अच्छा सवैया लिखा है-

                                          जोगी जति तपसी अरु सिद्ध, निरंतर ताहिं समाधि लगावत।

                                           ताहिं अहीर की छोहरिया छछिया भर छाछ पे नाच नचावत।। 

हे माँ! तू आद्या, अनादि, अनंत, असीम शक्ति का स्त्रोत है, तेरे से ही हमारे में ऊर्जा है। हम मूर्खतावश तेरे शक्ति को पहचान नहीं पा रहे हैं। तू एक पल मै आग लगा दे, दूसरे ही पल बाग लगा दे। फिर तुझ पर अबला का लांछन क्यों? हे माँ ! तेरे से प्रार्थना है कि हमें सद्बुद्धि दे कर हमारे जीवन बगिया को महकाये।       


     
          ‘‘सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।  शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।।

                   या देवी सर्व भूतेषू मातृ रूपेण संस्थिता।  नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नमः ।।                     

                    

4 टिप्‍पणियां:

  1. नारी कभी भी अबला नहीं रही, हमेशा ही सबला रही है। यह बात सदियों से चल रही है। ईश्वर ने नारी को रचना ही इस प्रकार की कि पुरुष सर्वसपन्न व सामर्थवान होकर नारी के सामने हार ही मान बैठता है।उसके रूप , लावण्य आने कुछ अन्य सब बेकार से लगते है। आज के युग में कुछ नारियां उनको मिले अधिकारों का गलत उपयोग करती भी देखी जा रही है,उन्हें पता है कि पुलिस, कोर्ट में उसकी हक में ही बात होंगी। जहां दूसरी और अधिकांश नारियां समाज का गौरव बनी बैठी है , वे अपने समर्पण से परिवार , समाज में संस्कारों को बचा पा रही है। केवल जरूरत है की वे अपने रूप लावण्य से अपने पति का घर बसाएं व संस्कारों से नए समाज का निर्माण में अपनी सार्थक भूमिका निभाएं। तुम न कभी अबला थी और ए कभी अबला रहोंगी। नारी तुम्हे नमन है तुम सृजन कर्ता को, सब तुम से यही आस लगाए बैठे हैं।
    निवेदक सामाजिक चिंतक देवेन्द्र त्रिपाठी अजमेर

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  2. प्रस्तुत लेख के अंत में सही ही कहा है कि नारी है तो सबला ही। वह शक्ति है , सृजन की और विनाश की । यदि उसे शिक्षित, संस्कारित किया जावे तो एक सुंदर समाज का सृजन कर सकती है । यदि उसे प्रताड़ना , भय ,असुरक्षा ,अशिक्षा ,गुलामी ,शोषण और पैर की जूती समझे तो वह एक ऐसे समाज की रचना करेंगी जिसमें आपका जीना दुर्भर हो जायेगा । जैसे को तैसा तो प्रकृति का नियम है। आज इतने कानूनों के बावजूद भी ज्यादातर मामलों में संपत्ती पुरुषों के नाम से ही होती है। हमारे पूर्वजों ने ठीक ही कहा है कि जहां नारी की पूजा , मान, सम्मान और विश्वास की रक्षा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं। पुरुष की प्रथम शिक्षक नारी ही है आप जैसा उसके साथ करेंगे वैसी ही रचना वह गढ कर आपको प्रस्तुत कर देगी । अपने गिरेबान में झांका जा सकता है । इसमें कोई हर्जा नहीं है। जो उन्नतिशील परिवार और समाज हैं उनमें प्रत्येक का उदाहरण देख लिजिये। वहां नारी सम्मान प्राप्त है । कुछ अपवादों को छोड़कर । और हम अपवाद ही क्यों देखें।

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  3. प्रस्तुत लेख के अंत में सही ही कहा है कि नारी है तो सबला ही। वह शक्ति है , सृजन की और विनाश की । यदि उसे शिक्षित, संस्कारित किया जावे तो एक सुंदर समाज का सृजन कर सकती है । यदि उसे प्रताड़ना , भय ,असुरक्षा ,अशिक्षा ,गुलामी ,शोषण और पैर की जूती समझे तो वह एक ऐसे समाज की रचना करेंगी जिसमें आपका जीना दुर्भर हो जायेगा । जैसे को तैसा तो प्रकृति का नियम है। आज इतने कानूनों के बावजूद भी ज्यादातर मामलों में संपत्ती पुरुषों के नाम से ही होती है। हमारे पूर्वजों ने ठीक ही कहा है कि जहां नारी की पूजा , मान, सम्मान और विश्वास की रक्षा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं। पुरुष की प्रथम शिक्षक नारी ही है आप जैसा उसके साथ करेंगे वैसी ही रचना वह गढ कर आपको प्रस्तुत कर देगी । अपने गिरेबान में झांका जा सकता है । इसमें कोई हर्जा नहीं है। जो उन्नतिशील परिवार और समाज हैं उनमें प्रत्येक का उदाहरण देख लिजिये। वहां नारी सम्मान प्राप्त है । कुछ अपवादों को छोड़कर । और हम अपवाद ही क्यों देखें।

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