(यह पत्र दाधीच सुबोधिनी के जून, 2014 के सम्पादकीय से लिया गया है। आरोह-अवरोह का क्रम सतत जारी रहता है, मंथन आपको करना है कि हम कितने कामयाब हुए है।)
आदरणीय नरेन्द्र मोदी जी!
नमो नमः। आपकी कामयाबी एवं जज्बे को बहुत-बहत सलाम। देश की जनता की ओर से बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं। आपने भारतीय संस्कृति की ऐसी मिशाल रखी कि जनता कायल हो गई। साधारण जीवन जीने वाले माँ के दुलारे मोदी को माँ का अपूर्व आशीर्वाद मिला। जहाँ-जहाँ आप गये, भारत माता का आंचल विस्तारित होता गया। आपकी अथक मेहनत, निर्भीकता, जनता का आपके प्रति करिश्माई विश्वास, आपकी सेवा भावना ने बीजेपी को ऐसी ऐतिहासिक जीत दिलवाई, जिसका सपना स्वयं आप और बीजेपी ने भी नहीं सोचा था। कभी मोदी बनाम बीजेपी तो कभी बीजेपी बनाम मोदी एक दिखाई देने लगे। आपने जनता को आश्वस्त कर दिया था कि आपका दिया हुआ प्रत्येक वोट सीधा मझे ही प्राप्त होगा। आपने कांग्रेस को 60 वर्ष दिये हैं, मझे केवल 60 माह ही दीजिये, मैं आपका सेवक बनकर आपकी सेवा करूंगा। जनता ने पूर्ण विश्वास किया और आखिर लोकतंत्र ने करवट बदली। लोकतंत्र ही विजयी हुआ। नमो का नमो-नमो मंत्र सिर चढ कर बोला। चाय बेचने वाले एक साधारण व्यक्ति को देश की जनता ने भारत का सरताज बना दिया। आपको भी जहाँ बोलना था खुलकर बोले। कश्मीर में धारा 370 के नफे-नुकसान पर एक बार कश्मीरियों को सोचने पर विवश कर दिया। यद्यपि कुछ पार्टियां आपको सांप्रदायिक बताती रही लेकिन देश के सभी जाति-धर्म के लोगों ने आपका खलकर समर्थन करते हुए एक छत्र पाटी के रूप में सिरमौर बना दिया तथा जहाँ जिस बिन्दु पर नहीं बोलना था, वहाँ आप चुप रहे। अपने ही बिरादरी के नेताओं के उपेक्षा भाव को आपने अपनी सादगी और सदाचार से अपने पक्ष में बोलने को मजबूर कर दिया। कांग्रेस में कोई कद्दावर नेता नहीं होने से कई राज्यों में तो पत्ता ही साफ हो गया। चुनाव से पहले चारों खाने चित्त हई मुख्य विपक्षी पार्टी दहाई के अंकों में ही सिमट कर रह गई। देखा जाये तो कांग्रेस के प्रति जनता की असंतुष्टि ही आपकी विजय माला बनी। बसपा का आरक्षण कार्ड भी बसपा को नहीं बचा सका और अंत में उसी को ले डूबा। अब भी हमें एक बार आरक्षण पर भी नये सिरे से सोचने की आवश्यकता है। उत्तर प्रदेश में सत्तासीन सपा भी आपकी लहर को रोक नहीं सकी। संघ, विहिप, बाबा रामदेव सबने आपको जिताने की पहले ही कमान संभाल ली थी।
किसान, बेरोजगार युवा, व्यापारी, सबको आप मसीहा के रूप में दिखाई देने लगे। देश की संत्रस्त जनता को गुजरात मॉडल दिखाकर आपने नई जान फूंक दी। आपमें वह मौलिकता तो है ही, जिसकी जनता कायल है। संसद की पहली सीढ़ी पर सिर नवाकर, सभी पडौसी देशों को अपने शपथ ग्रहण समारोह में बुलाकर आपके प्रति जनता का विश्वास और गहरा हो गया। अब आपको जनता की आकांक्षाओ पर खरा उतरना है, हमें विश्वास है कि आपकी निश्छल सेवा पारायणता से आप हर मोर्चे पर कामयाब होंगे।
पहला मोर्चा-बेरोजगारी-यह ऐसा मोर्चा है, जहां कल का भविष्य खड़ा है। युवाओं के माता-पिता संत्रस्त हैं, उन्होंने अपनी गाढ़ी कमाई से अपने पुत्रों को पढ़ा लिखाकर विभिन्न क्षेत्रों में ट्रेनिंग तक करवा दी है, लेकिन फिर भी उनको काम नहीं मिल पा रहा है। ऐसी स्थितियों में उन ट्रेनिंग सेन्टरों का क्या औचित्य रह जाता है? प्राईवेट सैक्टर में न स्थाई रूप से काम की गारन्टी है और न ही सरकार के बराबर पैसा मिलता है। और तो और जातिगत आरक्षण ने योगयता के सारे मापदंडों के परखच्चे उड़ा दिये हैं। सर्वप्रथम हमें इस मोर्चे पर सफलता हासिल करनी है। बिना भेदभाव हर जाति के युवाओं को हर हाल में काम मिलना ही चाहिए ताकि उनकी भी गृहस्थी बन सकें। आज तो स्थिति यह है कि यदि किसी लड़की को सरकारी नौकरी मिल गई तो उसको सरकारी नौकरी प्राप्त वर ढूंढने के लिए पसीने छूटने लगते हैं और वह लड़की अनब्याही रहने पर लाचार हो जाती है या कभी सामाजिक मर्यादा के बंधनों को ठुकरा देती है या कभी सरकारी नौकरी शुदा वर मिल भी जाये तो उस वर को हासिल करने के लिए वधु पक्ष को वर पक्ष की हर मनोवांछित कामना पूरी करनी पड़ती है। दोनों ही स्थितियों में युवतियों के परिजनों को घोर दुःख उठाना पड़ता है। इसलिए यह आवश्यक नहीं कि लडकियों को रोजगार के दंगल में धकेला जाये। उनके लिए तो वैसे ही गृहस्थी में इतना काम है कि उसमें पुरुष को पौरूष भी हिम्मत हार जाता है। और यह भी आवश्यक नहीं कि युवकों को 20-25 हजार ही मिले, लेकिन उनको न्यूनतम जीवन स्तर को चलाने के लिए उचित वेतन तो मिलना ही चाहिए, अन्यथा यही बेरोजगारी एक दिन अराजकता के रूप में सिर दर्द बन सकती है। इसके लिए बाकायदा रोजगार मंत्रालय खोला जा सकता है। जिसके माध्यम से सर्वे कराकर हर बेरोजगार को स्वरोजगार या प्राईवेट या सरकारी तंत्र में खपाया जा सकता है। सेवा निवृत्ति की आयु घटाकर या ऐच्छिक सेवा निवृत्ति के द्वारा युवकों के लिए रोजगार के अवसर खोले जा सकते हैं। रोजगार के अभाव में प्रत्येक दंपति से किसी एक को रोजगार का विकल्प दिया जा सकता है ताकि गृहस्थी का पहिया भी नहीं डगमगाये। वैसे भी नारी ही समर्पित मार्ग दृष्टा है जो अपने पति तथा अपने बच्चों का घर में रहकर मार्ग प्रशस्त करती आई है। आज स्थिति यह है कि परंपरागत उद्योग धंधे प्राय: नष्ट हो गये हैं, व्यक्ति जाये तो कहाँ जाये? यद्यपि आधुनिक टेक्नोलोजी अच्छी है, लेकिन जनशक्ति की इससे घोर उपेक्षा हुई है। हमें देश की पूरी श्रम शक्ति को 18 से 20 वर्ष से दोहन कर देश को पॉवरटी बनाना है। इसके लिए हमें पिता की तरह सोचकर उन युवाओं को आत्म निर्भर बनाना है, तब ही हम कल्याणकारी राज्य का सपना संजो सकते हैं। वैसे भी पैसा किसी के पास ठहरता नहीं है, बल्कि यही पैसा आदमी को रन कराता है।
दूसरा मोर्चा-कृषि-आज यदि सबसे ज्यादा दुःखी है तो वह है भारत का किसान। उसकी सारी उपज आधुनिक टेक्नोलोजी के भेंट चढ़ गई है। बीज की बुवाई से लेकर निराईए सिंचाईए कटाई, एवं लदाई तक वह सारा पैसा खेती पर स्वाहा करता आया है। पशुधन के अभाव में वह रासायनिक खाद दवाइयां आदि के लिए दूसरों का मुँह ताकता रहता है। उसके परिवार की सारी श्रम शक्ति कृषि पर लगी रहती है, उसके बावजूद प्राकृतिक आपदा यथा-सूखा बाढ़ए ओला वृष्टि से उसकी मेहनत का किया कराया सब चौपट हो जाता है। आज अन्नदाता की कद्र बिगड़ गई है। कोई अन्नदाता बनना ही नहीं चाहता, जबकि केवल खाद्य सामग्री ही नहीं अपितु सारे उद्योग धंधे कृषि जिंसों पर निर्भर है। हमें हर हाल में कषि पर ध्यान देना है। हमारे भारत की अधिकांश जनता इसी पर निर्भर है। हमारी कृषि बच गई तो समझ लो हम बच गये। सौर ऊर्जा के माध्यम ये हम किसानों को ही नहीं हर व्यक्ति को आत्म निर्भर बना सकते हैं, क्योंकि हमारा सारा जीवन सूर्य से ही संचालित होता है। हमें उन्नत कृषि एवं पशुओं के संरक्षण पर जोर देकर किसानों को पुरस्कार देते हुए उनका मान बढ़ाना है। क्योंकि आज भी हमारे देश में 70 प्रतिशत किसान मौजूद है, हमें उनका कृषि से पलायन रोकना है। जय जवान-जय किसान का नारा एक बार और बुलंद करना है। उसके लिए कृषि मंत्रालय को सजग करना है। कृषि एवं पशु संपदा से ही हम खुशहाल बन सकते हैं। पशुवध पर पूर्ण पाबंदी ही नहींए कठोर दंड का विधान होना चाहिए। आज पर्यावरण पूर्ण रूप से क्षत-विक्षत हो गया है जिसका खामियाजा हमें कई व्याधियों के रूप में भुगतना पड़ रहा है।
तीसरा मोर्चा-व्यापार/वाणिज्य-यह देश का रीढ़ खंभ है। इसी के बलबूते हम घर बैठे एक देश के कोने से देश के दूसरे कोने में वस्तु खरीदने में कामयाब हो सकते हैं। व्यापार वाणिज्य को हमें भय मुक्त बनाना है। आज आये दिन सरकारी कारिंदों के द्वारा छापे की कार्यवाही ने उनकी हवा निकाल दी है। टैक्स पर टैक्सों का भार आखिर जनता को ही भुगतना पड़ता है। ये व्यापारी ही है जो हमें अन्नए वस्त्रए दवाइयां एवं कई रोजमर्रा की ढेर सारी वस्तुएं हमें घर बैठे उपलब्ध करवाते हैं। व्यापार वाणिज्य के द्वारा भी हम बेरोजगारों को खपा सकते हैं। हमें लाइसेंस प्रणाली को एक सिरे से खारिज करना है, इसकी तह में भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार है। सरकारी कारिन्दे द्वारा इसी कारण अन्य व्यापारियों के नाक में दम किया जाता रहा है। सोचो यदि लाईसेन्स नहीं होगा तो हर व्यापारी उस वस्तु को आपके पास पहुँचाने की कोशिश करेगा और वैसे भी ईमानदार व्यापारी ही इसमें कारगर होता है । जनता इतनी मूर्ख भी नहीं कि कोई उसको बरगला सके, लेकिन यदि उस व्यापार में लाइसेंस द्वारा एकाधिकार होता है तो उसमें उसको कुछ हिस्सा सरकार के कारिन्दों को तथा कुछ हिस्सा अपने लिए अनाधिकृत रूप से रखने की सोच विकसित होती है। हमें व्यापार वाणिज्य में शुद्धता के लिए उत्पादित स्तर पर ध्यान रखना है। छोटे-मोटे व्यापारियों को नाजायज परेशान करने से कोई औचित्य नहीं है।
चौथा मोर्चा-नशा मुक्ति-यह मोर्चा ऐसा है जिसमें बड़े-बड़े भूपति भी अपना सब कुछ दांव पर लगाकर धूल चाटते फिर रहे हैं। इन मादक द्रव्यों ने कई बसी बसाई गृहस्थी को उजाड़ कर राख कर दिया है। इनसे आसक्त होकर कई युवक कई प्रकार की व्याधियों की चपेट में आ गया है। जिसका खामियाजा पूरे परिवार को ही नहीं, रिश्तेदार, समाज, देश तक को भुगतना पड़ रहा है। पूरा देश चाहता है कि गुजरात मॉडल की तरह भारत नशा मुक्त हो जाये। आज बीड़ी-सिगरेट, तम्बाकू-गुटका शराब की हर चौराहे पर दुकाने सजी है। सरकार अपने कोष को भरने के लिए बाकायदा उनको संरक्षण देते देखे गये हैं। उनको यह नहीं भूलना चाहिए कि जितनी आमदनी उन विषैली नशा सामग्री से होती है, उससे कहीं अधिक गुना उनसे होने वाली बीमारियों पर दवा आयात करने से नुकसान हो जाता है। आज ऐसे व्याधियों के गिरफ्त में वह युवक जल्दी आ जाता है जिसको रोजगार तो उपलब्ध हो गया है पर उसको संभालने के लिए उसकी संगिनी नहीं है या वह एकल रूप से रहता है। और जब उसको संगिनी मिलती है तब तक काफी देर चुकी होती है।
पांचवां मोर्चा-पुलिस एवं न्यायपालिका-कहने को तो हर पुलिस कार्यालय पर बोर्ड लगा रहता है 'आम आदमी में विश्वास और अपराधियों में डर' लेकिन होता उल्टा है। आम आदमी पुलिस से डरा-डरा महसूस करता है और अपराधी बेखौप होकर पुलिस के इर्द-गिर्द ही घूमता रहता है। कोई सी घटना घटने पर आम आदमी पुलिस के पास जाने से ही कतराता है और चला भी जाता है तो उसकी एफ.आई.आर. ही दर्ज नहीं होती या होती भी है तो उसके मन मुताबिक नहीं लिखी जाती है, बल्कि दूसरे पक्ष के वांछित अपराधी से भी शिकायत लिखाकर क्रोस केस दर्ज कराकर इतिश्री कर ली जाती है। पुलिस में भ्रष्टाचार जोरों पर है, उन्हें कोई कहने-सुनने वाला ही नहीं है। इसी तरह न्यायपालिका में वकीलों की चांदी है। छोटे से केस में कई वर्ष लग जाते हैं। कई बार तो जीते जी न्याय ही नहीं मिल पाता। न्याय में देरी ही बहुत बड़ा अन्याय है। पुलिस के द्वारा लाये हुए बड़े से बड़े अपराधी को जमानत मिल जाती है। साधारण व्यक्ति न्यायपालिका की ओर जाना ही पसंद नहीं करता। हमें न्याय शीघ्र दिलवाकर न्याय के मंदिर को पवित्रतम बनाना है।
देश में वैसे बहुत सारे मोर्चे हैं यथा-वैदेशिक नीति, भ्रष्टाचार का अंत, धर्म निरपेक्षता, नक्सलवाद, राजनैतिक सामंजस्यता, समरसता आदि जहां आपको जीत हासिल कर देश की जनता की वाहीवाही बटोरनी है। हमें आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आपके द्वारा बहुत सारा समाधान तो आपके व्यक्तित्व की सच्चरित्रता से ही पूरा हो जायेगाए जो आपको विरासत में मिला है। कहा भी गया है यथा राजा तथा प्रजा। एक बार आपको पुन: इस ऐतिहासिक विजय पर हार्दिक बधाई। आशा है, पूरी संजीदगी से जिस दम पर आप विजयी हुए है, उसी संजीदगी से देश का मान बढ़ाने में भी आप कामयाब होंगे। देश का भविष्य आपके साथ खड़ा है, सोचना आपको है। धन्यवाद।।
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