बुधवार, 7 जुलाई 2021

नया सवेरा (जीवंत एवं सच्ची कहानी)

 


    कमल ने आखें खोली, रात के दो बज रहे थे। देखा नीलू जगी हुई थी। वह पुराने कपड़े निकाल-निकाल कर फाड़ रही थी। कमल ने नीलू से कहा, देर रात तुम इस समय यह पुराने कपडों का क्या कर रही हो? नीलू ने बड़ी सहजता से कहा, आप सो जाओ, मैं मेरा काम कर रही हूँ। कमल निरूत्तर हो गया। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। थोड़ी देर बाद वह फिर नींद के आगोश में समा गया।

    दूसरे दिन नीलू नहा-धोकर, चाय लेकर कमल को जगा रही थी। कमल उठा, उसने चाय की चुस्किया लेते हुए फिर नीलू से रात को पुराने कपड़े फाड़-फाड़ कर इकट्ठे करने का कारण पूछा। नीलू ने कोई उत्तर नहीं दिया। बल्कि मुस्कराकर रह गई। चिड़ियायें कमरे में चहाचहा रही थी। पन्द्रह दिन पहले कैसे चिड़िया ने उनके लिए एक-एक तिनका जोड़कर घोंसला बनाया था, आज वह अपने बच्चों के लिए एक-एक दाना उनके मुंह में डाल रही थी। कमल अब समझ चुका था।

    कमल ने देखा कि हर जीव जंतु को अपनी प्रकृति का ख्याल रखना होता है। प्रकृति को अवरूद्ध करना या उसके विपरीत चलना ही सृष्टि का विनाश करना होता है। उसके कई दुष्परिणाम जीव जंतुओं को भुगतना पड़ता है। मनुष्य जान बूझकर भी विनाश के गर्त में पड़ता जा रहा है।

    नीलू का यह चौथा प्रसव था। उसका एक प्रसव उसके ससुराल तथा दो प्रसव उसके मैके में हो गये थे। नीलू की सास से पटरी नहीं बैठती थी तो कमल की अपने श्वसुर से छत्तीस का आंकड़ा था। यह अलग बात है कि खोटे समय में अपने पुत्र को देखते हुए कमल की माँ नीलू पर जान छिड़कती थी तो यही हाल नीलू के पिता का था। वे भी नीलू को देखते हुए कमल के भले के लिए चौक चौबंद रहते थे। रिश्ते की कड़ियां ही ऐसी थी कि न चाहते भी चाहना पड़ता था। नीलू के पापा ने कमल को कुछ दिन पहले ही कहा था-कंवर साहब आपके लड़कियां नहीं है, एक बार जापा(प्रसव) कराके देखो, सब पता पड़ जायेगा। उनके बोल कमल के सीने में नश्तर से चुभ रह थे। दोनों ने यह संकल्प कर लिया था, अबकी बार यह प्रसव दूसरी जगह ही होगा।

    शाम के समय कमल चार बजे ही विद्यालय से घर पर गया था। नीलू की दशा विकल थी। उसने हनुमान को बुलाया, हनुमान उनका विश्वासपात्र एवं आज्ञाकारी आठवीं कक्षा का विद्यार्थी था। हनुमान के घर वाले भी हनुमान को गुरूजी के सेवा के लिए हमेशा कहते कि बेटा गुरू की सेवा में ही मेवा है, यही नहीं हनुमान के घर वाले गुरूजी के लिए कभी दूध-दहीं तो कभी आंवले भिजवा दिया करते।

    कमल ने हनुमान से कहा, हनुमान तुझे आज अपनी उडान उडनी है, पास के गांव से वैद्यराज जी को बुलाना है। आज तेरे बहिनजी की तबियत खराब है। हनुमान ने कहा गुरूजी आप चिन्ता न करे, मैं अभी साईकिल से वैद्यराज को लेकर ही आता हूँ।

    देखते ही देखते एक घंटा बीत गया, पर हनुमान नहीं आया। रास्ता भी ऐसा ही था, उबड़-खाबड़ रेत के टीबे थे, पास में एक नाला था, जहां अनिकट बंधा था। रेत ही रेत का अंबार था। कमल के लिए एक-एक पल बड़े असह्य होते जा रहे थे। नीलू छटपटा रही थी। कमल के धैर्य का बांध छलक रहा था। उसके मस्तिक में उल्टे-सीधे विचारों का प्रवाह बह रहा था। अब उससे नहीं रहा गया। किसी पड़ोसी महिला को अपने बच्चों और नीलू का ध्यान रखने के लिए कहकर कमल भी वैद्यराज को बुलाने निकल पड़ा । नीलू को कह दिया कि मैं अभी गया और अभी आया, तू जरा भी चिंता मत करना। कमल पैदल ही निकल पड़ा। वैद्यराज जी का गांव तीन किमी दूर था। कमल लगभग भाग रहा था। कभी सांस फूल जाती थी तो रूक जाता और कभी नीलू का ध्यान आता तो वह दौडने लग जाता, उसमें नई शक्ति आ गई थी, पैरों में पंख लग गये थे। रेतों के टीबों को रौंदते हुए कुछ ही मिनटों में वह वैद्यराज के गांव में जा पहँचा। वैद्य जी सवाईमाधोपुर के रहने वाले थे। वर्षों से यही आकर रहने लग गये थे। आस-पास के गांवों में उनका बडा नाम था। वह सिद्ध हस्त थे। आज दिन तक उनका कोई केस ख़राब नहीं हआ था। अच्छे-अच्छे अंग्रेज डॉक्टरों को भी बात मात दे दी थी। यहां तक कि अंग्रेजी डॉक्टर भी उनसे द्वेष रखने लगे थे। आस-पास के सारे बीमार जन आयुर्वेद औषधालय ही आते। प्रसव में वैद्य जी का कोई सानी नहीं था। ब्राह्मण होने के नाते वे दवाई देने के साथ-साथ मंत्रोच्चार भी करते। दवा और मन्त्र दोनों ही काम करते, फिर भी वैद्यराज बहुत सहज थे। गांव अभी कोसों दूर थे। जब भी कहीं कोई बुलावा आता, वह पैदल ही निकल पड़ते। पीड़ित की पीड़ा हरने में ही उन्हें परम शांति मिलती थी।

    कमल को वैद्य जी के ठिकाने का पता नहीं था सो घुसते ही चौपाल पर बैठे बुजुर्गों से वैद्य जी के बारे में पूछा। उन्होंने बताया कि एक लड़का उनको साईकिल पर बैठाकर तुम्हारे उधर ही दूसरे गांव में लेकर गया है। कमल ने सोचा मेरे रास्ते में तो वे नहीं मिले। कमल की सांस मानो अटक गई थी, नीलू का ध्यान आते ही फिर उसके पैरों में पंख लग गये। वह गांव के बुजुर्गों द्वारा बताये हुए तिराहे से फूटे हुए दसरे रास्ते पर वैद्य जी के पीछे चल पड़ा। रास्ते में वह उस दूसरे गांव में राहगीरों से वैद्य जी के बारे में पूछता रहता, जिसकी उसको पुष्टि हो चली थी। दौड़ता भागता वह उस दूसरे गांव में भी आ गया था। गांव में घुसते ही कुछ लोग गुरूजी को पहचान गये थे, शायद इस गांव के बच्चे गुरूजी के गांव में पढ़ते होंगे सो ज्योंही गुरूजी ने वैद्यजी के बारे में पूछा तो वहां खड़े एक-दो बच्चों ने कहा कि वह हनुमान के साथ आपके गांव गये हैं। मौसम में मावट के संकेत थे, पानी की बूदें गिरने लग गई थी, धुंधुलका छा गया था। गांव का रास्ता भी अनजान था। कमल सोच रहा था-नीलू न जाने कैसे होगी, भगवान ही बचाये। अब गुरूजी के सब्र का बांध टूट चुका था। आंखों में आँसू छलक आये थे। गांव में सज्जन व्यक्तियों का वास था। गांव वालों ने गुरूजी की मनोदशा ताड़ ली थी, ग्रामवासियों ने कहा, आप चिंता नहीं करे, भगवान अच्छा ही करेगा। गुरूजी के रास्ता न पहचानने की दशा पर ग्रामवासियों ने एक नवयुवक को साथ कर दिया। उसने छाता ले लिया था। दोनों अंधेरे धुंधलके में पानी की रिमझिम के बीच गांव के किनारे आ गये थे। गुरूजी की जान में जान आने पर वह नवयुवक गुरूजा से अनुमति लेकर वापस अपने गांव मुड़ गया था।

    कमल जल्दी-जल्दी घर की तरफ दौड़ा। नीलू को गांव की महिलाएं घेर रखी थी। वैद्य जी वहां पहुंच चुके थे। वैद्य जी ने कुछ दवाये दे दी थी। नीलू को आराम मिल गया था। वैद्य जी ने कहा अभी पन्द्रह दिन का इन्तजार कीजिए, बहिन जी को कुछ नहीं हुआ है। मैं स्वयं पन्द्रह दिन बाद आ जाऊंगा। या आता जाता देख लूंगा। अभी चिन्ता की कोई बात नहीं है।

    सचमुच नीलू ठीक हो गई थी, उसने रोटी खा ली थी। पर अभी कमल पर से खतरा टला नहीं था। पन्द्रह दिन बाद क्या होगा, ऐसा सोचकर ही उसके रोंगटे खड़े हो जाते थे। देखते ही देखते आज पद्रहवां दिन था। यदा कदा वैद्य जी गांव में आते तो सार-संभाल पूछ जाते। आज वैद्य जी भी गांव में ही थे। कमल को कह दिया था कि मैं गाव में ही हूँ जब भी जरूरत हो मुझे सूचना दे देना। रात के आठ बजे कमल ने वैद्य जी को सूचना दी,। वैद्य जी शीघ्र गुरूजी के पास आ गये। नीलू को देखा, वे समझ गये। उन्होंने कुछ समय बाद मंत्रोच्चार के साथ एक इंजेक्शन नीलू के लगाया। गांव में एक महिला थी जो दांई काम भी करती थी, उसका बंदोबस्त पहले ही कर दिया गया था। वह भी वही थी। रात के दो बज चुके थे। कमरे में बच्चे के रोने की आवाज आ गई थी। वैद्यजी ने कमरे में जाकर नीलू को आवश्यक दवाएं दी और बाहर आ गए। यद्यपि कमल वैद्य जी को रोकना चाह रहा था, लेकिन वैद्य जी नहीं रूके, उन्होंने कह दिया अब चिन्ता की कोई बात नही है, मैं आज इसीलिए रुका हुआ था। कोई बात हो तो बता देना। वैद्य जी रात के दो बजे पैदल ही अपने गांव निकल गये।

    मुंह अंधेरे ही कमल उठ गया था। यद्यपि नीलू को अपने खून से लथपथ कपड़े पति से धुलवाने में संकोच हो रहा था। लेकिन कमल ने उस संकोच को दूर करते हुए कहा कि भगवान ने तुझे बचा लिया, वही मेरे लिए बड़ी बात है, यह कपड़े धोना मेरे लिए कोई बड़ी बात नहीं है।

    गांव के बाहर चड़स चल रहा था, उसने बाल्टी भरी और सारे कपडे खल-खल खंगाल दिये। मंदिर के बाहर दूर से ही ढोक लगाई। आज का सूर्य कमल के लिए नया सूरज था। नीलू के प्राण बच गये थे। घर पर नीलू प्रसन्न थी। बच्चा नीलू से लिपटा हुआ थिरक रहा था।

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